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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


कांग्रेस में स्वराज्य के ध्येय पर चर्चा हुई थी। विधान की धारा में साम्राज्य के भीतर अथवा उसके बाहर, जैसा मिले वैसा, स्वराज्य प्राप्त करने की बात थी। कांग्रेस में भी एक पक्ष ऐसा था, जो साम्राज्य के अन्दर रहकर ही स्वराज्य प्राप्त करना चाहता था। उस पक्ष का समर्थन पं. मालवीयजी और मि. जिन्ना ने किया था। पर उन्हें अधिक मत न मिल सके। विधान की यह एक धारा यह थी कि शान्तिपूर्ण और सत्यरूप साधनो द्वारा ही हमें स्वराज्य प्राप्त करना चाहिये। इस शर्त का भी विरोध किया गया था। पर कांग्रेस ने उसे अस्वीकार किया औऱ सारा विधान कांग्रेस में सुन्दर चर्चा होने के बाद स्वीकृत हुआ। मेरा मत है कि यदि लोगों ने इस विधान पर प्रामाणिकतापूर्वक और उत्साहपूर्वक अमल किया होता, तो उससे जनता को बड़ी शिक्षा मिलती। उसके अमल में स्वराज्य की सिद्धि समायी हुई थी। पर यह विषय यहाँ प्रस्तुत नहीं है।

इसी सभा में हिन्दू-मुस्लिम एकता के बारे में, अस्पृश्यता-निवारण के बारे में और खादी के बारे में भी प्रस्ताव पास हुए। उस समय से कांग्रेस के हिन्दू सदस्यों ने अस्पृश्यता को मिटाने का भार अपने ऊपर लिया है और खादी के द्वारा कांग्रेस ने अपना सम्बन्ध हिन्दुस्तान के नर-कंकालो के साथ जोडा है। कांग्रेस ने खिलाफत के सवाल के सिलसिले में असहयोग का निश्चय करके हिन्दू-मुस्लिम एकता सिद्ध करने का एक महान प्रयोग किया था।

अब इन प्रकरणों को समाप्त करने का समय आ पहुँचा है।

इससे आगे का मेरा जीवन इतना अधिक सार्वजनिक हो गया है कि शायद ही कोई ऐसी चीज हो, जिसे जनता जानती न हो। फिर सन 1921 से मैं कांग्रेस के नेताओं के साथ इतना अधिक ओतप्रोत रहा हूँ कि किसी प्रसंग का वर्णन नेताओं के सम्बन्ध की चर्चा किये बिना मंह यथार्थ रूप में कर ही नहीं सकता।

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