जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
अब मैं केवल खादीमय बनने के लिए अधीर हो उठा। मेरी धोती देशी मिल के कपड़े की थी। बीजापुर में और आश्रम में जो खादी बनती थी, वह बहुत मोटी और 30 इंच अर्ज की होती थी। मैंने गंगाबहन को चेतावनी दी कि अगर वे एक महीने के अन्दर 45 इंच अर्जवाली खादी की धोती तैयार करके न देगी, तो मुझे मोटी खादी की घटनो तक की धोती पहनकर अपना काम चलाना पड़ेगा। गंगाबहन अकुलायी। मुद्दत कम मालूम हुई, पर वे हारी नहीं। उन्होंने एक महीने के अन्दर मेरे लिए 50 इंच अर्ज का धोतीजोडा मुहैया कर दिया औऱ मेरा दारिद्रय मिटाया।
इसी बीच भाई लक्ष्मीदास लाठी गाँव से एक अन्त्यज भाई राजजी और उसकी पत्नी गंगाबहन को आश्रम में लाये और उनके द्वारा बड़े अर्ज की खादी बुनवाई। खादी प्रचार में इस दम्पती का हिस्सा ऐसा-वैसा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने गुजरात में और गुजरात के बाहर हाथ का सूत बनने की कला दूसरो को सिखायी है। निरक्षर परन्तु संस्कारशील गगाबहन जब करधा चलाती है, तब उसमें इतनी लीन हो जाती है कि इधर उधर देखने या किसी के साथ बातचीत करने की फुरसत भी अपने लिए नहीं रखती।
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