जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
0 |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
कांग्रेस में प्रवेश
मुझे कांग्रेस के कामकाज में हिस्सा लेना पड़ा, इसे मैं कांग्रेस में अपना प्रवेश नहीं मानता। इससे पहले की कांग्रेस की बैठकों में मैं गया सो सिर्फ अपनी वफादारी की निशानी के रूप में। छोटे-से-छोटे सिपाही के काम के सिवा मेरा वहाँ दूसरा कोई कार्य हो सकता है, ऐसा पहले की बैठकों के समय मुझे कभी आभास नहीं हुआ था, न इससे अधिक कुछ करने की मुझे इच्छा हुई थी।
अमृतसर के अनुभव ने बतलाया कि मेरी एक-दो शक्तियाँ कांग्रेस के लिए उपयोगी हैं। मैं कांग्रेस में यह देख रहा था कि पंजाब की जाँच-कमेटी के मेरे काम से लोकमान्य, मालवीयजी, मोतीलाल, देशबन्धु आदि खुश हुए थे। इसलिए उन्होंने मुझे अपनी बैठकों और चर्चाओं में बुलाया। इतना तो मैंने देख लिया था कि विषय-विचारिणी समिति का सच्चा काम इन्ही बैठकों में होता था और ऐसी चर्चाओं में वे लोग सम्मिलित होते थे, जिनपर नेता विशेष विश्वास या आधार रखते थे और दूसरे वे लोग होते थे, जो किसी-न-किसी बहाने से घुस जाते थे।
अगले साल करने योग्य कामों में से दो कामों में मुझे दिलचस्पी थी, क्योंकि उनमें मैं कुछ दखल रखता था। एक था जलियाँवाला बाग के हत्याकांड का स्मारक। इसके बारे में कांग्रेस ने बड़ी शान के साथ प्रस्ताव पास किया था। स्मारक के लिए करीब पाँच लाख रुपये की रकम इकट्ठी करनी थी। उसके संरक्षकों (ट्रस्टियों) में मेरा नाम था। देश में जनता के काम के लिए भिक्षा माँगने की जबरदस्त शक्ति रखनेवालों में पहला पद मालवीयजी का था और है। मैं जानता था कि मेरा दर्जा उनसे बहुत दूर नहीं रहेगा। अपनी यह शक्ति मैंने दक्षिण अफ्रीका में देख ली थी। राजा-महाराजाओं पर अपना जादू चलाकर उनसे लाखों रुपये प्राप्त करने की शक्ति मुझमें नहीं थी, आज भी नहीं है। इस विषय में मालवीयजी के साथ प्रतिस्पर्धा करनेवाला मुझे कोई मिला ही नहीं।
|