जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
उर्दू या हिन्दी शब्द ध्यान में न आने से मैं शरमाया, पर मैंने जवाब तो दिया ही। मुझे 'नॉन-कोऑपरेशन' शब्द सूझा। जब मौलाना भाषण कर रहे थे तब मैं यह सोच रहा था कि मौलाना खुद कई मामलो में जिस सरकार का साथ दे रहे है, उस सरकार के विरोध की बात करना उनके लिए बेकार है। मुझे लगा कि जब तलवार से सरकार का विरोध नहीं करना है, तो उसका साथ न देने में ही सच्चा विरोध है। और फलतः मैंने 'नॉन-कोऑपरेशन' शब्द का प्रयोग पहली बार इस सभा में किया। समर्थन में अपनी दलीले दी। उस समय मुझे इस बात का कोई ख्याल न था कि इस शब्द में किन-किन बातो का समावेश हो सकता है। इसलिए मैं तफसील में न जा सका। मुझे तो इतना ही कहने की याद है, 'मुसलमान भाइयो ने एक और भी महत्त्वपूर्ण निश्चय किया है। ईश्वर न करे, पर यदि कही सुलह की शर्ते उनके खिलाफ जाये, तो वे सरकार की सहायता करना बन्द कर देगी। मेरे विचार में यह जनता का अधिकार है। सरकारी उपाधियाँ धारण करने अथवा सरकारी नौकरियाँ करने के लिए हम बँधे हुए नहीं है। जब सरकार के हाथो खिलाफत जैसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धार्मिक प्रश्न के सम्बन्ध में हमे नुकसान पहुँचता है, तब हम उसकी सहायता कैसे कर सकते है? इसलिए अगर खिलाफत का फैसला हमारे खिलाफ हुआ, तो सरकारी सहायता न करने का हमे हक होगा।'
पर इसके बाद इस वस्तु का प्रचार होने में कई महीने बीत गये। यह शब्द कुछ महीनो तक तो इस सभा में ही दबा रहा। एक महीने बाद जब अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, तो वहां मैंने असहयोग के प्रस्ताव का समर्थन किया। उस समय तो मैंने यही आशा रखी थी कि हिन्दू-मुसलमानों के लिए सरकार के खिलाफ असहयोग करने का अवसर नहीं आयेगा।
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