जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
उत्तर मिला, 'आप फलाँ तारीख को जा सकते है।' मुझे तारीख ठीक याद नहीं है, पर बहुत करके वह 16 अक्तूबर थी।
लाहौर पहुँचने पर जो दृश्य मैंने देखा, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्टेशन पर लोगों का समुदाय इस कदर इकट्ठा हुआ था, मानो बरसो के बिछोह के बाद कोई प्रियजन आ रहा हो और सगे-संबंधी उससे मिलने आये हो। लोग हर्षोन्मत्त हो गये थे।
मुझे प. राजभजदत्त चौधरी के घर ठहराया गया था। श्री सरलादेवी चौधरानी पर, जिन्हें मैं पहले से ही जानता था, मेरी आवभगत का बोझ आ पड़ा था। आवभगत का बोझ शब्द मैं जानबूझकर लिख रहा हूँ, क्योंकि आजकल की तरह इस समय भी जहाँ मैं ठहरता था, वहाँ मकान-मालिक का मकान धर्मशाला -सा हो जाता था।
पंजाब में मैंने देखा कि बहुत से पंजाबी नेताओं के जेल में होने के कारण मुख्य नेताओं का स्थान पं. मालवीयजी, पं. मोतीलालजी और स्व. स्वामी श्रद्धानन्दजी ने ले रखा था। मालवीयजी और श्रद्धानन्द के सम्पर्क में तो मैं भलीभाँति आ चुका था, पर पं. मोतीलालजी के सम्पर्क में तो मैं लाहौर में ही आया। इन नेताओं ने और स्थानीय नेताओं ने, जिन्हें जेल जाने का सम्मान नहीं मिला था, मुझे तुरन्त अपना बना लिया। मैं कहीं भी अपरिचित-सा नहीं जान पड़ा।
हंटर कमेटी के सामने गवाही न देने का निश्चय हम सब ने सर्वसम्मति से किया। इसके सब कारण प्रकाशित कर दिये गये थे। इसलिए यहाँ मैं उनकी चर्चा नहीं करता। आज भी मेरी यह ख्याल है कि वे कारण सबल थे और कमेटी का बहिष्कार उचित था।
पर यह निश्चय हुआ कि यदि हंटर कमेटी का बहिस्कार किया जाये, तो जनता की ओर से अर्थात कांग्रेस की और से एक कमेटी होनी चाहिये। पं. मालवीय, पं. मोतीलाल नेहरू, स्व. चितरंजनदास, श्री अब्बास तैयबजी और श्री जयकर को तथा मुझे इस कमेटी में रखा गया। हम जाँच के लिए अलग अलग स्थानो पर बँट गये। इस कमेटी का व्यवस्था का भार सहज ही मुझ पर आ पड़ा था, और चूंकि अधिक-से-अधिक गाँवो की जाँच का काम मेरे हिस्से ही आया था, इसलिए मुझे पंजाब और पंजाब के गाँव देखने का अलभ्य लाभ मिला।
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