लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

'नवजीवन' और 'यंग इंडिया'


एक तरफ तो चाहे जैसा धीमा होने पर भी शान्ति-रक्षा का यह आन्दोलन चल रहा था और दूसरी तरफ सरकार की दमन नीति पूरे जोर से चल रही थी। पंजाब में उसके प्रभाव का साक्षात्कार हुआ। वहाँ फौजी कानून यानि नादिरशाही शुरू हुई। नेतागण पकड़े गये। खास अदालते अदालते नहीं, बल्कि केवल गवर्नर का हुक्म बजाने का साधन बनी हुई थी। उन्होंने बिना सबूत और बिना शहाशत के लोगों को सजाये दी। फऔजू सिपाहियो ने निर्दोष लोगों को कीड़ो की तरह पेट के बल चलाया। इसके सामने जलियाँवाला बाग का घोर हत्याकांड तो मेरी दृष्टि में किसी गिनती में नहीं था, यद्यपि आम लोगों का और दुनिया का ध्यान इस हत्याकांड ने ही खींचा था।

मुझ पर दबाव पड़ने लगा कि मैं जैसे भी बनू पंजाब पहुँचू। मैंने वाइसरॉय को पत्र लिखे, तार किये, परन्तु जाने की इजाजत न मिली। बिना इजाजत के जाने पर अन्दर तो जा ही नहीं सकता था, केवल सविनय कानून-भंग करने का संतोष मिल सकता था। मेरे सामने यह विकट प्रश्न खड़ा था कि इस धर्म-संकट में मुझे क्या करना चाहिये। मुझे लगा कि निषेधाज्ञा का अनादार करके प्रवेश करूँगा, तो वह विनय-पूर्वक अनादार न माना जायेगा। शान्ति की जो प्रतीति मैं चाहता था, वह मुझे अब तक हुई नहीं थी। पंजाब की नादिरशाही ने लोगों को अशान्ति को अधिक भड़का दिया था। मुझे लगा कि ऐसे समय मेरे द्वारा की गयी कानून की अवज्ञा जलती आग में घी होम ने का काम करेगी। अतएव पंजाब में प्रवेश करने की सलाह को मैंने तुरन्त माना नहीं। मेरे लिए यह निर्णय एक कड़वा घूट था। पंजाब से रोज अन्याय के समाचार आते थे औऱ मुझे उन्हें रोज सुनना तथा दाँत पीसकर रह जाना पड़ता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book