जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
'पहाड़-जैसी भूल'
अहमदाबाद की सभा के बाद मैं तुरन्त ही नडियाद गया। 'पहाड़-जैसी भूल' नामक का जो शब्द-प्रयोग हुआ है, उसका उपयोग मैंने पहली बार नड़ियाद में किया। अहमदाबाद में ही मुझे अपनी भूल मालूम पड़ने लगी थी। पर नड़ियाद में वहाँ की स्थिति का विचार करके और यह सुनकर कि खेडा जिले के बहुत से लोग पकडे गये है, जिस सभा में मैं घटित घटनाओ पर भाषण कर रहा था, उसमें मुझे अचानक यह ख्याल आया कि खेड़ा जिले के और ऐसे दूसरे लोगों को कानून का सविनय भंग करने के लिए निमंत्रित करने में मैंने जल्दबाजी की भूल की और वह भूल मुझे पहाड़-जैसी मालूम हुई।
इस प्रकार अपनी भूल कबूल करने के लिए मेरी खूब हँसी उड़ाई गयी। फिर भी अपनी इस स्वीकृति के लिए मुझे कभी पश्चाताप नहीं हुआ। मैंने हमेशा यह माना है कि जैसे हम दूसरो के गज-जैसे दोषो को रजवत् मानकर देखते है और अपने रजवत् प्रतीत होने वाले दोषो को पहाड़-जैसा देखना सीखते है, तभी अपने और पराये दोषो को ठीक-ठीक अंदाज हो पाता है। मैंने यह भी माना है कि सत्याग्रही बनने की इच्छा रखने वाले को तो इस साधारण नियम का पालन बहुत अधिक सूक्ष्मता के साथ करना चाहिये।
अब हम यह देखे कि पहाड़-जैसी प्रतीत होने वाली वह भूल क्या थी। कानून का सविनय भंग उन्हीं लोगों द्वारा किया जा सकता है, जिन्होने विनय-पूर्वक और स्वेच्छा से कानून का सम्मान किया हो। अधिकतर तो हम कानून का पालन इसलिए करते है कि उसे तोड़ने पर जो सजा होती है उससे हम डरते है। और, यह बात उस कानून पर विशेष रूप से घटित होती है, जिसमे नीति-अनीति का प्रश्न नहीं होता। कानून हो चाहे न हो, जो लोग भले माने जाते है वे एकाएक कभी चोरी नहीं करते। फिर भी रात में साइकल पर बत्ती जलाने के नियम से बच निकलने में भले आदमियो को भी क्षोभ नहीं होता, और ऐसे नियम का पालन करने की कोई सलाह-भर देता है, तो भले आदमी भी उसका पालन करने के लिए तुरन्त तैयार नहीं होते। किन्तु जब उसे कानून में स्थान मिलता है और उसका भंग करने पर दंड़ित होने का डर लगता है, तब दंड की असुविधा से बचने के लिए वे रात में साइकल पर बत्ती जलाते है। इस प्रकार का नियम पालन स्वेच्छा से किया हुआ पालन नहींx कहा जा सकता।
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