जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
चौपाटी पर सभा हुई। मैंने लोगों को शान्ति और सत्याग्रह की मर्यादा के विषय में समझाया और बतलाया, 'सत्याग्रह सच्चे का हथियार है। यदि लोग शान्ति न रखेगे, तो मैं सत्याग्रह की लड़ाई कभी लड़ न सकूँगा।'
अहमदाबाद से श्री अनसूयाबहन को भी खबर मिल चुकी थी कि उपद्रव हुआ है। किसी ने अफवाह फैला दी थी कि वे भी पकड़ी गयी है। उससे मजदूर पागल हो उठे थे। उन्होंने हड़ताल कर दी थी, उपद्रव भी मचाया, और एक सिपाही का खून भी हो गया था।
मैं अहमदाबाद गया। मुझे पता चला कि नड़ियाद के पास रेल की पटरी उखाडने की कोशिश भी हुई थी। वीरगाम में एक सरकारी कर्मचारी का खून हो गया था। अहमदाबाद पहुँचा तब वहाँ मार्शल लॉ जारी था। लोगों में आतंक फैला हुआ था। लोगों ने जैसा किया वैसा पाया और उसका ब्याज भी पाया।
मुझे कमिश्नर मि. प्रेट के पास ले जाने के लिए एक आदमी स्टेशन पर हाजिर था। मैं उसके पास गया। वे बहुत गुस्से में थे। मैंने उन्हें शान्ति से उत्तर दिया। जो हत्या हुई थी उसके लिए मैंने खेद प्रकट किया। यह भी सुझाया कि मार्शल लॉ की आवश्यकता नहीं है, और पुनः शान्ति स्थापति करने के लिए जो उपवास करने जरूरी हो, सो करने की अपनी तैयारी बतायी। मैंने आम सभा बुलाने की माँग की। यह सभा आश्रम की भूमि पर करने की अपनी इच्छा प्रकट की। उन्हे यह बात अच्छी लगी। जहाँ तक मुझे याद है, मैंने रविवार ता. 13 अप्रैल को सभा की था। मार्शल लॉ भी उसी दिन अथवा अगले दिन रद्द हुआ था। इस सभा में मैंने लोगों को उनके दोष दिखाने का प्रयत्न किया। मैंने प्रायश्चित के रूप में तीन दिन के उपवास किये और लोगों को एक उपवास करने की सलाह दी। जिन्होने हत्या वगैरा में हिस्सा लिया हो, उन्हें मैंने सुझाया कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें।
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