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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


सूरत पहुँचने पर किसी दूसरे अधिकारी ने मुझे अपने कब्जे में लिया। उसने मुझे रास्ते में कहा, 'आप रिहा कर दिये गये है। लेकिन आपके लिए मैं ट्रेन को मरीन लाइन्स स्टेशन के पास रुकवाऊँगा। आप वहाँ उतर जायेंगे, तो ज्यादा अच्छा होगा। कोलाबा स्टेशन पर बड़ी भीड़ होने की सम्भावना है।' मैंने उससे कहा कि आपका कहा करने में मुझे प्रसन्नता होगी। वह खुश हुआ औऱ उसने मुझे धन्यवाद दिया। मैं मरीन लाइन्स पर उतरा। वहाँ किसी परिचित को घोड़ागाड़ी दिखायी दी। वे मुझे रेवाशंकर झवेरी के घर छोड़ गये। उन्होंने मुझे खबर दी, 'आपके पकड़े जाने की खबर पाकर लोग क्रुद्ध हो गये है और पागल-से बन गये है। पायधूनी के पास दंगे का खतरा है। मजिस्ट्रेट और पुलिस वहाँ पहुँच गयी है।'

मैं घर पहुँचा ही था कि इतने में उमर सोबानी और अनसूयाबहन मोटर में आये और उन्होंने मुझे पायधूनी चलने को कहा। उन्होंने बताया, 'लोग अधीर हो गये है और बड़े उत्तेजित हैं। हममे से किसी के किये शान्त नहीं हो सकते। आपको दखेगे तभी शान्त होगे। '

मैं मोटर में बैठ गया। पायधूनी पहुँचते ही रास्ते में भारी भीड़ दिखायी दी। लोग मुझे देखकर हर्षोन्मत हो उठे। अब जुलूस बना। 'वन्दे मातरम' और 'अल्लाहो अकबर' के नारो से आकाश गूंज उठा। पायधूनी पर घुडसवार दिखायी दिये। ऊपर से ईटो की वर्षा हो रही थी। मैं हाथ जोड़कर लोगों से प्रार्थना कर रहा था कि वे शान्त रहे। पर जान पड़ा कि हम भी ईटो की इस बौछार से बच नहीं पायेगे।

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