जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
वह सप्ताह - 1
दक्षिण में थोड़ी यात्रा करके संभवतः 4 अप्रैल को मैं बम्बई पहुँचा। शंकरलाल बैंकर का तार था कि छठी का तारीख मनाने के लिए मुझे बम्बई में मौजूद रहना चाहिये।
पर इससे पहले दिल्ली में तो हड़ताल 30 मार्च के दिन ही मनायी जा चुकी थी। दिल्ली में स्व. श्रद्धानन्दजी और मरहूम हकीम साहब अजमलखाँ की दुहाई फिरती थी। 6 अप्रेल तक हडताल की अवधि बढाने की सूचना दिल्ली देर से पहुँची थी। दिल्ली में उस दिन जैसी हड़ताल हुई वैसी पहले कभी न हुई थी। ऐसा जान पड़ा मानो हिन्दु और मुसलमान दोनों एक दिल हो गये है। श्रद्धानन्दजी को जामा मस्जिद में निमंत्रित किया गया और वहाँ उन्हें भाषण करने दिया गया। अधिकारी यह सब सहन नहीं कर पाये। रेलवे स्टेशन की तरफ जाते हुए जुलूस को पुलिस ने रोका और गोलियाँ चलायी। कितने ही लोग घायल हुए। कुछ जान से मारे गये। दिल्ली में दमन का दौर शुरू हुआ। श्रद्धानन्दजी ने मुझे दिल्ली बुलाया। मैंने तार दिया कि बम्बई में छठी तारीख मनाकर तुरन्त दिल्ली पहुँचूगा।
जो हाल दिल्ली का था, वही लाहौर-अमृतसर का भी रहा। अमृतसर से डॉ. सत्यपाल और किचलू के तार आये थे कि मुझे वहाँ तुरन्त पहुँचना चाहिये। इन दो भाईयो को मैं उस समय बिल्कुल जानता नहीं था। पर वहाँ भी इस निश्चय की सूचना भेजी थी कि दिल्ली होकर अमृतसर पहुँचूगा।
6 अप्रैल के दिन बम्बई में सवेरे-सवेरे हजारों लोग चौपाटी पर स्नान करने गये और वहाँ से ठाकुरद्वार (यहाँ 'ठाकुरद्वार' के स्थान पर 'माधवबाग' पढिये। अब तक के अंग्रेजी और गुजराती संस्करण में यह गलती रहती आयी है। उस समय गाँधीजी के साथ रहनेवाले श्री मथुरादास त्रिकमजी ने इसे सुधरवाया था।) जाने के लिए जुलूस रवाना हुआ। उसमें स्त्रियाँ और बच्चे भी थे। जुलूल में मुसलमान भी अच्छी संख्या में सम्मिलित हुए थे।
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