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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


यों मैं मौत की राह देखता बैठा था। इतने में डॉ. तलवरकर एक विचित्र प्राणी तो लेकर आये। वे महाराष्ट्री है। हिन्दुस्तान उन्हें पहचानता नहीं। मैं उन्हें देखकर समझ सका था कि वे मेरी ही तरह 'चक्रम' है। वे अपने उपचार का प्रयोग मुझ पर करने के लिए आये थे। उन्हें डॉ. तलवरकर अपनी सिफारिश के साथ मेरे पास लाये थे। उन्होंने ग्रांट मेंडिकल कॉलेज में डॉकटरी का अध्ययन किया था, पर वे डिग्री नहीं पा सके थे। बाद में मालूम हुआ कि वे ब्रह्मसमाजी है। नाम उनका केलकर है। बड़े स्वतंत्र स्वभाव के है। वे बरफ के उपचार के बड़े हिमायती है। मेरी बीमारी की बात सुनकर जिस दिन वे मुझ पर बरफ का अपना उपचार आजमाने के लिए आये, उसी दिन से हम उन्हें 'आइस डॉक्टर' के उपनाम से पहचानते है। उपने विचारो के विषय में वे अत्यन्त आग्रही है। उनका विश्वास है कि उन्होंने डिग्रीधारी डॉक्टरो से भी कुछ अधिक खोजे की है। अपना यह विश्वास वे मुझ में पैदा नहीं कर सके, यह उनक और मेरे दोनों के लिए दुःख की बात रही है। मैं एक हद तक उनके उपचारो में विश्वास करता हूँ। पर मेरा ख्याल है कि कुछ अनुमानो तक पहुँचने में उन्होंने जल्दी की है।

पर उनकी खोजे योग्य हो अथवा अयोग्य, मैंने उन्हें अपने शरीर पर प्रयोग करने दिये। मुझे बाह्य उपचारो से स्वस्थ होना अच्छा लगता था, सो भी बरफ अर्थात् पानी के। अतएव उन्होंने मेरे सारे शरीर पर बरफ घिसनी शुरू की। इस इलाज से जितने परिणाम की आशा वे लगाये हुए थे, उतना परिणाम तो मेरे सम्बन्ध में नहीं निकला। फिर भी मैं, जो रोज मौत की राह देखा करता था, अब मरने के बदले कुछ जीने की आशा रखने लगा। मुझे कुछ उत्साह पैदा हुआ। मन के उत्साह के साथ मैंने शरीर में भी कुछ उत्साह का अनुभव किया। मैं कुछ अधिक खाने लगा। रोज पाँच-दस मिनट धूमने लगा। अब उन्होंने सुझाया, 'अगर आप अंड़े का रस पीये, तो आप में जितनी शक्ति आयी है उससे अधिक शक्ति आने की गारंटी मैं दे सकता हूँ। अंड़े दूध के समान ही निर्दोष है। वे माँस तो हरगिज नहीं है। हरएक अंड़े में से बच्चा पैदा होता ही है, ऐसा कोई नियम नहीं है। जिनसे बच्चे पैदा होते ही नहीं ऐसे निर्जीव अंड़े भी काम में लाये जाते है, इसे मैं आपके सामने सिद्ध कर सकता हूँ।' पर मैं ऐसे निर्जीव अंड़े लेने को भी तैयार न हुआ। फिर भी मेरी गाड़ी कुछ आगे बढ़ी और मैं आसपास के कामों में थोड़ा-थोड़ा रस लेने लगा।

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