जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
ग्राम-प्रवेश
प्रायः प्रत्येक पाठशाला में एक पुरुष और एक स्त्री की व्यवस्था की गयी थी। उन्हीं के द्वारा दवा और सफाई के काम करने थे। स्त्रियो की मारफत स्त्री-समाज में प्रवेश करना था। दवा का काम बहुत सरल बना दिया था। अंडी का तेल, कुनैन और एक मरहम -- इतनी ही चीजें प्रत्येक पाठशाला में रखी जाती थी। जाँचने पर जीभ मैंली दिखाई दे और कब्ज की शिकायत हो तो अंड़ी का तेल पिला देना। बुखार की शिकायत हो तो अंडी का तेल देने के बाद आने वाले को कुनैन पिला देना। और अगर फोड़े हो तो उन्हे धोकर उनपर मरहम लगा देना। खाने की दवा अथवा मरहम के साथ ले जाने के लिए शायद ही दिया जाता था। कही कोई खतरनाक या समझ में न आनी वाली बीमारी होती, तो वह डॉ. देव को दिखाने के लिए छोड़ दी जाती। डॉ. देव अलग-अलग जगह में नियत समय पर हो आते थे। ऐसी सादी सुविधा का लाभ लोग ठीक मात्रा में उठाने लगे थे। आम तौर से होने वाली बीमारियो थोडी ही है और उनके लिए बड़े-बड़े विशारदो की आवश्यकता नहीं होती। इसे ध्यान में रखा जाय, तो उपर्युक्त रीति से की गयी व्यवस्था किसी को हास्यजनक प्रतीत नहीं होगी। लोगों को तो नहीं ही हुई।
सफाई का काम कठिन था। लोग गंदगी दूर करने के लिए तैयार नहीं थे। जो लोग गोज खेतो की मजदूरी करते थे वे भी अपने हाथ से मैंला साफ करने के लिए तैयार न थे। डॉ. देव हार मान लेनेवाले आदमी न थे। उन्होंने और स्वयंसेवको ने अपने हाथ से एक गाँव की सफाई की, लोगों के आंगनो से कचरा साफ किया, कुओ के आसपास के गड्ढे भरे, कीचड़ निकाला और गाँववालो को स्वयंसेवक देने की बात प्रेम-पूर्वक समझाते रहे। कुछ स्थानो में लोगों ने शरम में पड़कर काम करना शुरू किया और कहीं-कहीं तो लोगों ने मेरी मोटर आने-जाने के लिए अपनी मेंहनत से सड़के भी तैयार कर दी। ऐसे मीठे अनुभवो के साथ ही लोगों की लापरवाही के कड़वे अनुभव भी होते रहते थे। मुझे याद है कि कुछ जगहो में लोगों ने अपनी नाराजी भी प्रकट की थी।
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