जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
भ्रमण आरम्भ करने से पहले मुझे वाइसरॉय से मिल लेना उचित मालूम हुआ। उन्होंने तुरन्त ही मुझे मिलने की तारीख भेजी। उस समय मि. मेंफी, अब सर जॉन मेंफी के साथ मेरा अच्छा सम्बन्ध स्थापित हो गया। लार्ड चेम्सफर्ड के साथ संतोषजनक बातचीत हुई। उन्होंने निश्चय पूर्वक तो कुछ न कहा, पर मुझे उनकी मदद की आशा बंधी।
भ्रमण का आरम्भ मैंने बम्बई से किया। बम्बई में सभा करने का जिम्मा मि. जहाँगीर पिटीट ने अपने सिर लिया। इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसियेशन के नाम से सभा हुई। उसमें डॉ. रीड, सर लल्लूभाई शामलदास, मि. नटराजन आदि थे। मि. पिटीट तो थे ही। प्रस्ताव में गिरमिट प्रथा बन्द करने की विनती करनी थी। प्रश्न यह था कि वह कब बन्द की जाय? तीन सुझाव थे, 'जितनी जल्दी हो सके', 'इकतीसवीं जुलाई तक' और 'तुरन्त'। इकतीसवीम जुलाई का मेरा सुझाव था। मुझे तो निश्चित तारीख की जरूरत थी, ताकि उस अवधि में कुछ न हो तो यह सोचा जा सके कि आगे क्या करना है या क्या हो सकता है। सर लल्लूभाई का सुझाव 'तुरन्त' शब्द रखने का था। उन्होंने कहा, 'इकतीसवीं जुलाई की अपेक्षा तुरन्त शब्द अधिक शीध्रता-सूचक है।' मैंने समझाने का प्रयत्न किया कि जनता 'तुरन्त' शब्द को नहीं समझ सकती। जनता से कुछ काम लेना हो तो उसके सामने निश्चयतात्मक शब्द होना चाहिये। 'तुरन्त' का अर्थ तो सब अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार करेंगे। सरकार उसका एक अर्थ करेंगी, जनता दूसरा। 'इकतीसवीं जुलाई' का अर्थ सब एक ही करेंगे और इस तारीख तर मुक्ति न मिली तो हमे क्या कदम उठाना चाहिये, सो हम सोच सकेंगे। यह दलील डॉ. रीड के गले तुरन्त उतर गयी। अन्त में सर लल्लूभाई को भी 'इकतीसवीं जुलाई' पसन्द आ गयी और प्रस्ताव में यह तारीख रखी गयी। सार्वजनिक सभा में यह प्रस्ताव पेश किया गया और सर्वत्र 'इकतीसवीं जुलाई' की सीमा अंकित हुई।
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