जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इस परिवार को आश्रम में रखकर आश्रम ने बहुतेरे पाठ सीखे है और प्रारंभिक काल में ही इस बात के बिल्कुल स्पष्ट हो जाने से कि आश्रम में अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है, आश्रम की मर्यादा निश्चित हो गयी और इस दिशा में उसका काम बहुत सरल हो गया। इसके बावजूद, आश्रम का खर्च, बराबर बढ़ता रहने पर भी, मुख्यतः कट्टर माने जाने वाले हिन्दुओं की तरफ से मिलता रहा है। कदाचित् यह इस बात का सूचक है कि अस्पृश्यता की जड़े अच्छी तरह हिल गयी है। इसके दूसरे प्रमाण तो अनेको है। परन्तु जहाँ अंत्यज के साथ रोटी तक का व्यवहार रखा जाता है, वहाँ भी अपने को सनातनी मानने वाले हिन्दू मदद दे, यह कोई नगण्य प्रमाण नहीं माना जायगा।
इसी प्रश्न को लेकर आश्रम में हुई एक और स्पष्टका, उसके सिलसिले में उत्पन्न हुए नाजुक प्रश्नो का समाधान, कुछ अनसोची अड़चनो का स्वागत- इत्यादि सत्य की खोज के सिलसिले में हुए प्रयोगों का वर्णन प्रस्तुत होते हुए भी मुझे छोड़ देना पड़ रहा है। इसका मुझे दुःख है। किन्तु अब आगे के प्रकरणों में यह दोष रहने ही वाला है। मुझे महत्त्व के तथ्य छोड़ देने पड़ेगे, क्योंकि उनमें हिस्सा लेने वाले पात्रो में से बहुतेरे अभी जीवित है और उनकी सम्मति के बिना उनके नामो का और उनसे संबंध रखनेवाले प्रसंगो का स्वतंत्रता-पूर्वक उपयोग करना अनुचित मालूम होता है। समय-समय पर सबकी सम्मति मंगवाना अथवा उनसे सम्बन्ध रखनेवाले तथ्यों को उनके पास भेज कर सुधरवाना सम्भव नहीं है और यह आत्मकथा की मर्यादा के बाहर की बात है। अतएव इसके आगे की कथा यद्यपि मेरी दृष्टि से सत्य के शोधक के लिए जानने योग्य है, तथापि मुझे डर है कि वह अधूरी ही दी जा सकेंगी। तिस पर भी मेरी इच्छा और आशा यह है कि भगवान पहुँचने दे, तो असहयोग के युग तक मैं पहुँच जाऊँ।
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