जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
अधिकारी ने अपना अधिकार चलाना शुरू किय। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वे सब मामलो में हमारे मुखिया है। अपनी मुख्तारी के दो-चार पदार्थ-पाठ भी उन्होंने हमे पास पहुँचे। वे इस जहाँगीरी को बरदाश्त करने के लिए तैयार न थे। उन्होंने कहा, 'हमे सब हुक्म आपके द्वारा ही मिलने चाहिये। अभी तो हम लोग शिक्षण-शिविर में ही है और हर मामले में बेहूदे हुक्म निकलते रहते है। उन नौजवानो में और हममे अनेक बातो में भेद बरता जा रहा है। यह सब सह्य नहीं है। इसकी तुरन्त सफाई होनी ही चाहिये, नहीं तो हमारा काम चौपट हो जायेगा। ये विद्यार्थी और दूसरे लोग, जो इस काम में सम्मिलित हुए है, एक भी बेहूदा हुक्म बरदाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। आत्म-सम्मान की वृद्धि के लिए उठाये हुए काम में अपमान ही सहन करना पड़े यह नहीं हो सकता। '
मैं अधिकारी के पास गया। अपने पास आयी हुई सब शिकायते मैंने उन्हें एक पत्र द्वारा लिखित रूप में देने को कहा और साथ ही अपने अधिकार की बात कही। उन्होंने कहा, 'शिकायत आपके द्वारा नहीं होनी चाहिये। शिकायत तो नायब-अधिकारियों द्वारा सीधी मेरे पास आनी चाहिये।'
मैंने जवाब में कहा, 'मुझे अधिकार माँगने की लालसा नहीं है। सैनिक दृष्टि से तो मैं साधारण सिपाही कहा जाऊँगा, पर हमारी टुकड़ी के मुखिया के नाते आपको मुझे उसका प्रतिनिधि मानना चाहिये।' मैंने अपने पास आयी हुई शिकायते भी बतायी, 'नायब-अधिकारी हमारी टुकड़ी से पूछे बिना नियुक्त किये गये है और उनके विषय में बड़ा असंतोष फैला हुआ है। अतएव वे हटा दिये जाये और टुकड़ी को अपने नायब-अधिकारी चुनने का अधिकार दिया जाये।'
यह बात उनके गले नहीं उतरी। उन्होंने मुझे बताया कि इन नायब-अधिकारियों को टुकड़ी चुने, यह बात ही सैनिक नियम के विरुद्ध है, और यदि वे हटा दिये जाये तो आज्ञा-पालन का नाम-निशान भी न रह जाये य़
हमने सभा की। सत्याग्रह के गम्भीर परिणाम कह सुनाये। लगभग सभी ने सत्याग्रह की शपथ ली। हमारी सभा ने यह प्रस्ताव पास किया कि यदि वर्तमान नायब-अधिकारी हटाये न जाये और दल को नये अधिकारी पसन्द न करने दिये जाये, तो हमारी टुकड़ी कवायद में जाना और कैम्प में जाना बन्द कर देगी।
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