लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


अहिंसा व्यापक वस्तु है। हम हिंसा की होली के बीच धिरे हुए पामर प्राणी है। यह वाक्य गलत नहीं है कि 'जीव जीव पर जीता है।' मनुष्य एक क्षण के लिए भी बाह्य हिंसा के बिना जी नहीं सकता। खाते-पीते, उठते-बैठते, सभी क्रियाओ में इच्छा-अनिच्छा से वह कुछ-न-कुछ हिंसा तो करता ही रहता है। यदि इस हिंसा से छूटने के लिए वह महाप्रयत्न करता है, उसकी भावना केवल अनुकम्पा होती है, वह सूक्षम-से-सूक्षम जंतु का भी नाश नहीं चाहता और यथाशक्ति उसे बचाने का प्रयत्न करता है, तो वह अहिंसा का पुजारी है। उसके कार्यो में निरन्तर संयम की वृद्धि होगी, उसमें निरन्तर करूणा बढ़ती रहेगी। किन्तु कोई देहधारी बाह्य हिंसा से सर्वथा मुक्त नहीं हो सकता।

फिर, अहिंसा की तह में ही अद्वैत-भावना निहित है। और, यदि प्राणीमात्र मैं अभेद है, तो एक के पाप का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है, इस कारण भी मनुष्य हिंसा से बिल्कुल अछूता नहीं रह सकता। समाज में रहने वाला मनुष्य समाज की हिंसा से, अनिच्छा से ही क्यों न हो, साझेदार बनता है। दो राष्टो के बीच युद्ध छिड़ने पर अहिंसा पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति का धर्म है कि वह उस युद्ध को रोके। जो इस धर्म का पालन न कर सके, जिसमे विरोध करने की शक्ति न हो, जिसे विरोध करने का अधिकार प्राप्त न हुआ हो, वह युद्ध कार्य में सम्मिलित हो, और सम्मिलित होते हुए भी उसमें से अपने का, अपने देश को और सारे संसार को उबारने का हार्दिक प्रयत्न करे।

मुझे अंग्रेजी राज्य के द्वारा अपनी अर्थात् अपने राष्ट की स्थिति सुधारनी थी। मैं विलायत में बैठा हुआ अंग्रेजो के जंगी बेड़े से सुरक्षित था। उस बल का इस प्रकार उपयोग करके मैं उसमें विद्यमान हिंसा में सीधी तरह साझेदार बनता था। अतएव यदि आखिरकार मुझे उस राज्य के साथ व्यवहार बनाये रखना हो, उस राज्य के झंडे के नीचे रहना हो, तो या तो मुझे प्रकट रूप से युद्ध का विरोध करके उसका सत्याग्रह के शास्त्र के अनुसार उस समय तक बहिस्कार करना चाहिये, जब तक उस राज्य की युद्धनीति में परिवर्तन न हो, अथवा उसके जो कानून भंग करने योग्य हो उसका सविनय भंग करके जेल की राह पकड़नी चाहिये, अथवा उसके युद्धकार्य में सम्मिलित होकर उसका मुकाबला करने की शक्ति और अधिकार प्राप्त करना चाहिये। मुझ में ऐसी शक्ति नहीं थी। इसलिए मैंने माना कि मेरे पास युद्ध में सम्मिलित होने का ही मार्ग बचा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book