लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

लड़ाई में हिस्सा


विलायत पहुँचने पर पता चला कि गोखले तो पेरिस में अटक गये है, पेरिस के साथ यातायात का सम्बन्ध टूट गया है और कहना मुश्किल है कि वे कब आयेंगे। गोखले अपने स्वास्थ्य के कारण फ्रांस गये थे, परन्तु लड़ाई की वजह से वहाँ फँस गये। उनसे मिले बिना मुझे देश जाना न था और कोई कह सकता था कि वे कब आ सकेंगे।

इस बीच क्या किया जाय? लड़ाई के बारे में मेरा धर्म क्या है? जेल के मेरे साथी और सत्याग्रही सोराबजी अडाजणिया विलायत में ही बारिस्टरी का अभ्यास करते थे। अच्छे-से-अच्छे सत्याग्रही के नाते सोराबजी तो बारिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैड भेजा गया था। ख्याल यह था कि वहाँ से लौटने पर वे दक्षिण अफ्रीका में मेरी जगह काम करेंगे। उनका खर्च डॉ. प्राणजीवनदास मेंहता देते थे। उनसे और उनके द्वारा डॉ. जीवराज मेंहता इत्यादि जो लोग विलायत में पढ़ रहे थे उनसे मैंने विचार-विमर्श किया। विलायत में रहने वाले हिन्दुस्तानियो की एक सभा बुलायी और उनके सामने मैंने अपने विचार रखे। मुझे लगा कि विलायत में रहने वाले हिन्दुस्तानियो को लड़ाई में अपना हिस्सा अदा करना चाहिये। अंग्रेज विद्यार्थियो ने लड़ाई में सेवा करने का अपना निश्चय घोषित किया था। हिन्दुस्तानी इससे कम नहीं कर सकते थे। इन दलीलो के विरोध में इस सभा में बहुत दलीले दी गयी। यह कहा गया कि हमारी और अंग्रेजो की स्थिति के बीच हाथी-घोडे का अन्तर है। एक गुलाम है, दूसरा सरदार है। ऐसी स्थिति में सरदार के संकट में गुलाम स्वेच्छा से सरदार की सहायता किस प्रकार कर सकता है? क्या गुलामी से छुटकारा चाहने वाले गुलाम का धर्म यह नहीं है कि वह सरदार के संकट का उपयोग अपनी मुक्ति के लिए करे? पर उस समय यह दलील मेरे गले कैसे उतरती? यद्यपि मैं दोनों की स्थिति के भेद को समझ सका था, फिर भी मुझे हमारी स्थिति बिल्कुल गुलामी की नहीं लगती थी। मेरा तो यह ख्याल था कि अंग्रेजो की शासन-पद्धति में जो दोष है, उससे अधिक दोष अनेक अंग्रेज अधिकारियों में है। उस दोष को हम प्रेम से दूर कर सकते है। यदि अंग्रेजो के द्वारा और उनकी सहायता से अपनी स्थिति सुधारना चाहते है, तो उनके संकट के समय उनकी सहायता करके हमे अपनी स्थिति सुधारनी चाहिये। उनकी शासन-पद्धति दोषपूर्ण होते हुए भी मुझे उस समय उतनी असह्य नहीं मालूम होती थी जितनी आज मालूम होती है। किन्तु जिस प्रकार आज उस पद्धति पर से मेरा विश्वास उठ गया है और इस कारण मैं आज अंग्रेजी राज्य की मदद नहीं करता, उसी प्रकार जिनका विश्वास उस शासन पद्धति पर से नहीं, बल्कि अंग्रेज अधिकारियों पर से उठ चुका था, वे क्योकर मदद करने को तैयार होते?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book