जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
बालकों को मारपीट कर पढाने का मैं हमेशा विरोधी रहा हूँ। मुझे ऐसी एक ही घटना याद है कि जब मैंने अपने लड़को में से एक को पीटा था। रूल से पीटने में मैंने उचित कार्य किया या नहीं, इसका निर्णय मैं आज तक कर नहीं सका हूँ। इस दंड के औचित्य के विषय में मुझे शंका है, क्योंकि इसमे क्रोध भरा था और दंड देने की भावना था। यदि उसमें केवल मेरे दुःख का ही प्रदर्शन होता, तो मैं उस दंड को उचित समझता। पर उसमें विद्यमान भावना मिश्र थी। इस घटना के बाद तो मैं विद्यार्थियो को सुधारने की अच्छी रीति सीखा। यदि इस कला का उपयोग मैंने उक्त अवसर पर किया होता, तो उसका कैसा परिणाम होतो यह मैं कर नहीं सकता। वह युवक तो इस घटना को तुरन्त भूल गया। मैं यह नहीं कर सकता कि उसमें बहुत सुधार हो गया, पर इस घटना ने मुझे इस बात को अधिक सोचने के लिए विवश किया कि विद्यार्थी के प्रति शिक्षक को धर्म क्या है। उसके बाद युवको द्वारा ऐसे ही दोष हुए, लेकिन मैंने फिर कभी दंडनीति का उपयोग नहीं किया। इस प्रकार आत्मिक ज्ञान देने के प्रयत्न में मैं स्वयं आत्मा के गुण अधिक समझने लगा।
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