जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
रिमझिम-रिमझिम मेंह बरस रहा था। स्टेशन दूर था। डगबन से फीनिक्स तक रेल का और फीनिक्स से लगभग मील का पैदल रास्ता था। खतरा काफी था, पर मैंने माना कि भगवान मदद करेगा। एक आदमी को पहले से फीनिक्स भेज दिया। फीनिक्स में हमारे पास 'हैमक' था। जालीदार कपड़े की झोली या पालने को हैमक कहते है। उसके सिरे बाँस से बाँध दिये जाये, तो बीमार उसमें आराम से झूलता रह सकता है। मैंने वेस्ट को खबर भेजी कि वे हैमक, एक बोतल गरम दूध, एक बोतल गरम पानी और छह आदमियो को साथ लेकर स्टेशन पर आ जाये।
दूसरी ट्रेन के छूटने का समय होने पर मैंने रिक्शा मँगवाया और उसमें, इस खतरनाक हालत में, पत्नी को बैठाकर म रवाना हो गया।
मुझे पत्नी की हिम्मत नहीं बँधानी पड़ी, उलटे उसी ने मुझे हिम्मत बँधाते हुए कहा, 'मुझे कुछ नहीं होगा, आप चिन्ता न कीजिये।'
हड्डियो के इस ढाँचे में वजन तो कुछ रह ही नहीं गया था। खाया बिल्कुल नहीं जाता था। ट्रेन के डिब्बे तक पहुँचाने में स्टेशन के लंबे-चौड़े प्लेटफार्म पर दूर तक चल कर जाना पड़ता था। वहां तक रिक्शा नहीं जा सकता था। मैं उसे उठाकर डिब्बे तक ले गया। फीनिक्स पहुँचने पर तो वह झोली आ गयी थी। उसमें बीमार को आराम से ले गये। वहाँ केवल पानी के उपचार से धीरे-धीरे कस्तूरबाई का शरीर पुष्ट होने लगा।
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