जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
काँपते काँपते मैंने उसकी पट्टी खोली। घाव को साफ किया औऱ साफ मिट्टी की पुलटिल रखकर पट्टी को पहले की तरह फिर बाँध दिया। इस प्रकार मैं खुद ही रोज घाव को घोता और उस पर मिट्टी बाँधता था। कोई एक महीने में घाव बिल्कुल भर गया। किसी दिन कोई विध्न उत्पन्न न हूआ और घाव दिन ब दिन भरता गया। स्टीमर के डॉक्टर ने कहलवाया था कि डॉक्टरी पट्टी से भी घाव भरने में इतना समय तो लग ही जायेगा।
इस प्रकार इन घरेलू उपचारो के प्रति मेरा विश्वास और इन पर अमल करने की मेरी हिम्मत बढ़ गई। घाव, बुखार, अजीर्ण, पीलिया इत्यादि रोगो के लिए मिट्टी, पानी और उपवास के प्रयोग मैंने छोटे बड़ों और स्त्री-पुरुषो पर किये। उनमें से वे अधिकतर सफल हुए। इतना होने पर भी जो हिम्मत मुझमे दक्षिण अफ्रीका में थी वह यहाँ नहीं रही और अनुभव से यह भी प्रतीति हुई कि इन प्रयोगों में खतरा जरूर है।
इन प्रयोगों के वर्णन का हेतु अपने प्रयोगों की सफलता सिद्ध करना नहीं है। एक भी प्रयोग सर्वाश में सफल हुआ हैं, ऐसा दावा नहीं किया जा सकता। डॉक्टर भी ऐसा दावा नहीं कर सकते। पर कहने का आशय इतना ही है कि जिसे नये अपरिचित प्रयोग करने हो उस आरम्भ अपने से ही करना चाहिये। ऐसा होने पर सत्य जल्दी प्रकट होता है और इस प्रकार के प्रयोग करने वाले को ईश्वर उबार लेता है।
जो खतरा मिट्टी के प्रयोगों में था, वह यूरोपियनो के निकट सहवास में था। भेद केवल प्रकार का था। पर स्वयं मुझे तो इन खतरो का कोई ख्याल कर न आया।
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