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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

महामारी-2


इस प्रकार मकान और बीमारों को अपने कब्जे में लेने के लिए टाइनक्लर्क ने मेरा उपकार माना और प्रामाणिकता से स्वीकार किया, 'हमारे पास ऐसी परिस्थिति में अपने आप अचानक कुछ कर सकने के लिए कुछ साधन नहीं है। आपको जो मदद चाहिये, आप माँगिये। टाउन-कौंसिल से जिनती मदद बन सकेगी उतनी वह करेगी।' पर उपयुक्त उपचार के प्रति सजग बनी हुई इस म्युनिसिपैलिटी ने स्थिति का सामना करने में देर न की।

दूसरे दिन मुझे एक खाली पड़े हुए गोदाम को कब्जा दिया और बीमारों को वहाँ ले जाने की सूचना दी। पर उसे साफ करने का भार म्युनिसिपैलिटी ने नहीं उठाया। मकान मैंला और गन्दा था। मैंने खुद ही उसे साफ किया। खटिया वगैरा सामान उदार हृदय के हिन्दुस्तानियो की मदद से इकट्ठा किया और तत्काल एक कामचलाऊ अस्पताल खड़ा कर लिया। म्युनिसिपैलिटी ने एक नर्स भेज दी और उसके साथ ब्रांडी की बोतल और बीमारो के लिए अन्य आवश्यक वस्तुए भेजी। डॉ. गॉडफ्रे का चार्ज कायम रहा।

हम नर्स को क्वचित् ही बीमारो को छूने दे थे। नर्स स्वयं छूने को तैयार थी। वह भले स्वभाव की स्त्री थी। पर हमारा प्रयत्न यह था कि उसे संकट में न पड़ने दिया जा।

बीमारो को समय समय पर ब्रांडी देने की सूचना थी। रोग की छूत से बचने के लिए नर्स हमे भी थोड़ी ब्रांडी लेने को कहती और खुद भी लेती थी।

हममे कोई ब्रांडी लेनेवाला न था। मुझे तो बीमारो को भी ब्रांडी देने में श्रद्धा न थी। डॉ. गॉडफ्रे की इजाजत से तीन बीमारो पर, जो ब्रांडी के बिना रहने को तैयार थे और मिट्टी के प्रयोग करने को राजी थे, मैंने मिट्टी का प्रयोग शुरू किया और उनके माथे और छाती में जहाँ दर्द होता था वहाँ वहाँ मिट्टी की पट्टी रखी। इन तीन बीमारों में से दो बचे। बाकी सब बीमारो का देहान्त हो गया। बीस बीमार तो गोदाम में ही चल बसे।

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