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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मदनजीन ने एक खाली पड़े हुए मकान का ताला निडरता पूर्वक तोड़कर उस पर कब्जा कर लिया। मैं अपनी साइकल पर लोकेशन पहुँचा। वहाँ से टाउन-क्लर्क को सब जानकारी भेजी और यह सूचित किया कि किन परिस्थितियों में मकान पर कब्जा किया गया था।

डॉ. विलियन गॉडफ्रे जोहानिस्बर्ग में डॉक्टरी करते थे। समाचार मिलते ही वे दौडे आये और बीमारो के डॉक्टर और नर्स का काम करने लगे। पर हम तीन आदमी तेईस बीमारो को संभाल नहीं सकते थे।

अनुभव के आधार पर मेरा यह विश्वास बना हैं कि भावना शुद्ध हो तो संकट का सामना करने के लिए सेवक और साधन मिल ही जाते है। मेरे आफिस में कल्याणदास, माणेकलाल और दूसरे दो हिन्दुस्तानी थे। अन्तिम दो के नाम इस समय याद नहीं है. कल्याणदास को उनके जैसे परोपकारी और आज्ञा पालन में विश्वास रखने वाले सेवक मैंने वहाँ थोड़े ही देखे होगे। सौभाग्य से कल्याणदास उस समय ब्रह्मचारी थे। इसलिए उन्हें चाहे जैसा जोखिम का काम सौपने में मैंने कभी संकोच नहीं किया। दूसरे माणेकलाल मुझे जोहानिस्बर्ग में मिल गये थे। मेरा ख्याल है कि वे भी कुँवारे थे। मैंने अपने इन चारों मुहर्रिर, साथियों अथवा पुत्रों - कुछ भी कह लीजिये - को होमने का निश्चय किया। कल्याणदास को तो पूछना ही क्या था? दूसरे तीन भी पूछते ही तैयार हो गये। 'जहाँ आप वहाँ हम' यह उनका छोटा र मीठा जवाब था।

मि. रीच का परिवार बड़ा था। वे स्वयं तो इस काम में कूद पड़ने को तैयार थे, पर मैंने उन्हें रोका। मैं उन्हें संकट में डालने के लिए बिल्कुल तैयार न था। ऐसा करने की मुझ में हिम्मत न थी। पर उन्होंने बाहर का सब काम किया।

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