जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
जोहानिस्बर्ग में ऐसा एक 'लोकेशन' था। दूसरी सब जगहों में जो 'लोकेशन' बसाये गये थे और जो आज भी मौजूद है, उनमें हिन्दुस्तानियों को कोई मालिकी हक नहीं होता। पर इस जोहानिस्बर्ग वाले लोकेशन में जमीन 99 वर्ष के लिए पट्टे पर दी गयी थी। इसमे हिन्दुस्तानियों की आबादी अत्यन्त घनी थी। बस्ती बढ़ती थी, पर लोकेशन बढ़ नहीं सकता था। उसके पाखाने जैसे-तैसे साफ अवश्य होते थे, पर इसके सिवा म्युनिसिपैलिटी की ओर से और कोई विशेष देखरेख नहीं होती थी। वहाँ सड़क और रोशनी की व्यवस्था तो होती ही कैसे? इस प्रकार जहाँ लोगों के शौचादि से संबंध रखने वाली व्यवस्था की भी किसी को चिन्ता न थी, वहाँ सफाई भला कैसे होती? जो हिन्दुस्तानी वहाँ बसे हुए थे, वे शहर की सफाई और आरोग्य इत्यादि के नियम जानने वाले सुशिक्षित और आदर्श हिन्दुस्तानी नहीं थे कि उन्हें म्युनिसिपैलिटी की मदद की अथवा उनकी रहन-सहन पर म्युनिसिपैलिटी की देख-रेख की आवश्यकता न हो। यदि वहाँ जगंल में मंगल कर सकने वाले, धूल में से धान पैदा करने की शक्तिवाले हिन्दुस्तानी जाकर बसे होते, तो उनका इतिहास सर्वथा भिन्न होता। ऐसे लोग बड़ी संख्या में दुनिया के किसी भी भाग में परदेश जाकर बसते पाये नहीं जाते। साधारणतः लोग धन और धंधे के लिए परदेश जाते हैं। पर हिन्दुस्तान से मुख्यतः बड़ी संख्या में अपढ़, गरीब और दीन दुःखी मजदूर ही गये थे। उन्हें तो पग पग पर रक्षा की आवश्यकता थी। उनके पीछे-पीछे व्यापारी और दूसरे स्वतंत्र हिन्दुस्तानी जो गये, वे तो मुट्ठी भर ही थे।
इस प्रकार सफाई की रक्षा करने वाले विभाग की अक्षम्य असावधानी के कारण और हिन्दुस्तानी बाशिन्दों के अज्ञान के कारण आरोग्य की दृष्टि से लोकेशन की स्थिति बेशक खराब थी। म्युनिसिपैलिटी ने उसे सुधारने की थोड़ी भी उचित कोशिश नहीं की। परन्तु अपने ही दोष से उत्पन्न हुई खराबी को निमित्त बनाकर सफाई -विभाग ने उक्त लोकेशन को नष्ट करने का निश्चय किया और उस जमीन पर कब्जा करने का अधिकार वहाँ की धारासभा से प्राप्त किया। जिस समय मैं जोहानिस्बर्ग में जाकर बसा था, उस समय वहाँ की हालत ऐसी थी।
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