जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैंने उससे पूछा, 'आपको हिन्दुस्तानी आदमी के अधीन काम करने में कोई अड़चन तो नहीं हैं?'
उसने ढृढता-पूर्वक उत्तर दिया, 'बिल्कुल नहीं।'
'आप वेतन किनता लेगी?'
उसने जवाब दिया, 'क्या साढे सतरह पौंड आपके ख्याल से अधिक होंगे?'
'आपसे मैं जितने काम की आशा रखता हूँ उतना काम आप करेंगी तब तो मैं इसे बिल्कुल अधिक नहीं समझूगा। आप काम पर कब से आ सकेंगी।'
'आप चाहे तो इसी क्षण से।'
मैं बहुत खुश हुआ और उस बहन को उसी समय अपने सामने बैठाकर मैंने पत्र लिखाना शुरू कर दिया।
उसने केवल मेरे कारकून का ही नहीं, बल्कि मैं मानता हूँ कि सगी लड़की अथवा बहन का पद तुरन्त ही सहज भाव से ले लिया। मुझे उसे कभी ऊँची आवाज में कुछ कहना न पड़ा। शायद ही कभी उसके काम में कोई गलती निकालनी पड़ी हो। एक समय ऐसा था कि जब हजारों पौंड की व्यवस्था उसके हाथ में थी और वह हिसाब-किताब भी रखने लगी। उसने संपूर्ण रूप से मेरा विश्वास संपादन कर लिया था। लेकिन मेरे मन बड़ी बात यह थी कि मैं उसकी गुह्यतम भावनाओ को जानने जिनता उसका विश्वास संपादन कर सका था। अपना साथी पसन्द करने में उसने मेरी सलाह ली थी। कन्यादान देने का सौभाग्य भी मुझे ही प्राप्त हुआ था। मिस डिक जब मिसेज मैंकडॉनल्ड बन गयी, तब उन्हें मुझसे अलग होना पड़ा, यद्यपि विवाह के बाद भी काम की अधिकता होने पर मैं जब चाहता उनसे काम ले लेता था।
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