जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इसलिए जब बोआर ब्रिटिश युद्ध शुरू हुआ, तब अपना घर भरा होते हुए भी मैंने जोहानिस्बर्ग से आये हुए दो अंग्रेजो को अपने यहाँ टिका लिया। दोनों थियॉसॉफिस्ट थे। उनमें से एक का नाम किचन था। इनक चर्चा हमे आगे भी करनी होगी। इन मित्रों के सहवास ने भी धर्मपत्नी को रुलाया ही था। मेरे कारण उसके हिस्से में रोने के अनेक अवसर आये है। बिना किसी परदे के इतने निकट संबंध में अंग्रेजो को घर में रखने का यह मेरा पहला अनुभव था। इंग्लैंड में मैं उनके घरो में अवश्य रहा था। पर उस समय मैं उनकी रहन-सहन की मर्यादा में रहा था और वह रहना लगभग होटल में रहने जैसा था। यहाँ बात उससे उल्टी थी। ये मित्र कुटुम्ब के व्यक्ति बन गये थे। उन्होंने बहुत-कुछ भारतीय रहन-सहन का अनुकरण किया था।
यद्यपि घर के अन्दर बाहर का साज-सामान अंग्रेजी ढंग का था, तथापि अन्दर की रहन-सहन और खान-पान आदि मुख्यतः भारतीय थे। मुझे याद हैं कि इन मित्रों को रखने में कई कठिनाइयाँ खड़ी हुई थी, लेकिन मैं यह अवश्य कह सकता हूँ कि दोनों व्यक्ति घर के दूसरे लोगों के साथ पूरी तरह हिलमिल गये थे। जोहानिस्बर्ग में ये संबंध डरबन से भी अधिक आगे बढ़े।
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