जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इन दो में से एक अधिकारी भागा। पुलिस कमिश्नर ने बाहर का वारंट निकालकर उसे वापस पकड़वा मँगाया। मुकदमा चला। प्रमाण भी मजबूत थे और एक के तो भागने का प्रमाण जूरी के पास पहुँच सका था। फिर भी दोनों छूट गये !
मुझे बड़ी निराशा हुई। पुलिस कमिश्नर को भी दुःख हुआ। वकालत से मुझे अरुचि हो गयी। बुद्धि का उपयोग अपराध को छिपाने में होता देखकर मुझे बुद्धि ही अप्रिय लगने लगी।
दोनों अधिकारियों का अपराध इतना प्रसिद्ध हो गया था कि उनके छूट जाने पर भी सरकार उन्हें रख नहीं सकी। दोनों बरखास्त हो गये और एशियाई विभाग कुछ साफ हुआ। अब हिन्दुस्तानियो को धीरज बँधा औऱ उनकी हिम्मत भी बढ़ी।
इससे मेरी प्रतिष्ठा बढ़ गयी। मेरे धंधे में भी बृद्धि हुई। हिन्दुस्तान समाज के जो सैकड़ो पौंड हर महीने रिश्वत में जाते थे, उनमें बहुत कुछ बचत हुई। यह तो नहीं कहा जा सकता कि पूरी रकम बची। बेईमान तो अब भी रिश्वत खाते थे। पर यह कहा जा सकता हैं कि जो प्रामाणिक थे, वे अपनी प्रामणिकता की रक्षा कर सकते थे।
मैं कह सकता हूँ कि इन अधिकारियों के इतने अधम होने पर भी उनके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में कुछ भी न था। मेरे इस स्वभाव को वे जानते थे। और जब उनकी कंगाल हालत में मुझे उन्हें मदद करने का मौका मिला, तो मैंने उनकी मदद भी की थी। यदि मेरी विरोध न हो तो उन्हें जोहानिस्बर्ग की म्युनिसिपैलिटी में नौकरी मिल सकती थी। उनका एक मित्र मुझे मिला औऱ मैंने उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करना मंजूर कर लिया। उन्हें नौकरी मिल भी गयी।
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