जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पर इस परिवर्तन से कब्ज की शिकायत दूर न हुई। कूने के कटिस्नान का उपचार करने से थोड़ा आराम हुआ। पर अपेक्षित परिवर्तन तो नहीं ही हुआ। इस बीच उसी जर्मन होटलवाले ने या दूसरे किसी मित्र ने मुझे जुस्ट की 'रिटर्न टु नेचर' ( प्रकृति की ओर लौटो ) नामक पुस्तक दी। उसमें मैंने मिट्टी के उपचार के बारे में पढ़ा। सूखे औप हरे फल ही मनुष्य का प्राकृतिक आहार हैं, इस बात का भी इस लेखक ने बहुत समर्थन किया हैं। इस बार मैंने केवल फलाहार का प्रयोग तो शुरू नहीं किया, पर मिट्टी के उपचार तुरन्त शुरू कर दिया। मुझ पर उसका आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा। उपचार इस प्रकार था, खेत की साफ लाल या काली मिट्टी लेकर उसमें प्रमाण से पानी डाल कर साफ, पतले, गीले कपड़े में उसे लपेटा और पेट पर रखकर उस पर पट्टी बाँध दी। यह पुलटिस रात को सोते समय बाँधता था और सबेरे अथवा रात में जब जाग जाता तब खोल दिया करता था। इससे मेरा कब्ज जाता रहा। उसके बाद मिट्टी के ये उपचार मैंने अपने पर और अपने अनेक साथियों पर किये और मुझे याद है कि वे शायद ही किसी पर निष्फल रहे हो।
देश में आने के बाद मैं ऐसे उपचारो के विषय में आत्म-विश्वास खो बैठा हूँ। मुझे प्रयोग करने का, एक जगह स्थिर होकर बैठने का अवसर भी नहीं मिल सका। फिर भी मिट्टी और पानी के उपचारों के बारे में मेरी श्रद्धा बहुत कुछ वैसी ही है जैसी आरम्भ में थी। आज भी मैं मर्यादा के अन्दर रहकर मिट्टी का उपचार स्वयं अपने ऊपर तो करता ही हूँ और प्रसंग पड़ने पर अपने साथियों को भी उसकी सलाह देता हूँ। जीवन में दो गम्भीर बीमारियाँ मैं भोग चुका हूँ, फिर भी मेरा यह विश्वास है कि मनुष्य को दवा लेने की शायद ही आवश्यकता रहती हैं। पथ्य तथा पानी, मिट्टी इत्यादि के घरेलू उपचारों से एक हजार में से 999 रोगी स्वस्थ हो सकते हैं। क्षण-क्षण में बैद्य, हकीम और डॉक्टर के घर दौड़ने से और शरीर में अनेक प्रकार के पाक और रसायन ठूँसने से मनुष्य न सिर्फ अपने जीवन को छोटा कर लेता हैं, बल्कि अपने मन पर काबू भी खो बैठता है। फलतः वह मनुष्यत्व गँवा देता है और शरीर का स्वामी रहने के बदले उसका गुलाम बन जाता हैं।
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