जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इस प्रकार मैंने चर्चा चलायी। प्रिटोरिया और जोहानिस्बर्ग में रहने वाले भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श करके अन्त में जोहानिस्बर्ग में दफ्तर रखने का निश्चय किया। ट्रान्सवाल में मुझे वकालत की सनद मिलने के बारे में भी शंका तो थी ही। पर वकील-मंडल की ओर से मेरे प्रार्थना-पत्र का विरोध नहीं हुआ औऱ बड़ी अदालत ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
हिन्दुस्तानि को अच्छे स्थान में आफिस के लिए घर मिलना भी कठिन काम था। मि. रीच के साथ मेरा अच्छा परिचय हो गया था। उस समय वे व्यापापी-वर्ग में थे। उनकी जान-पहचान के हाउस-एजेंट के द्वारा मुझे आफिस के लिए अच्छी बस्ती में घर मिल गया और मैंने वकालत शुरू कर दी।
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