लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


पर तीसरे दर्जे की यात्रा की इस चर्चा को अब यहीँ छोडकर मैं काशी के अनुभव पर आता हूँ। काशी स्टेशन पर मैं सबेरे उतरा। मुझे किसी पंडे के ही यहाँ उतरना था। कई ब्राह्मणों ने मुझे घेर लिया। उनमें से जो मुझे थोड़ा सुघड़ और सज्जन लगा, उसका घर मैंने पसन्द किया। मेरा चुनाव अच्छा सिद्ध हुआ। ब्राह्मण के आँगन में गाय बँधी थी। ऊपर एक कमरा था। उसमें मुझे ठहराया गया। मैं विधि-पूर्वक गंगा-स्नान करना चाहता था। पंडे ने सब तैयारी की। मैंने उससे कह रखा था कि मैं सवा रुपये से अधिक दक्षिणा नहीं दे सकूँगा, अतएव उसी के लायक तैयारी वह करे। पंडे ने बिना झगडे के मेरी बिनती स्वीकार कर ली। वह बोला, 'हम लोग अमीर-गरीब सब लोगों को पूजा तो एक सी ही कराते हैं। दक्षिणा यजमान की इच्छा और शक्ति पर निर्भर करती हैं।' मेरे ख्याल से पंड़ा जी में पूजा-विधि में कोई गड़बडी नहीं थी। लगभग बारह बजे इससे फुरसत पाकर मैं काशीविश्वनाथ के दर्शन करने गया। वहाँ जो कुछ देखा उससे मुझे दुःख ही हुआ।

सन् 1991 में जब मैं बम्बई में वकालत करता था, तब एक बार प्रार्थना-समाज के मन्दिर में 'काशी की यात्रा' विषय पर व्याख्यान सुना था। अतएव थोड़ी निराशा के लिए तो मैं पहले से तैयार ही था। पर वास्तव में जो निराशा हुई, वह अपेक्षा से अधिक थी।

सकरी, फिसलनवाली गली में से होकर जाना था। शान्ति का नाम भी नहीं था। मक्खियो की भिनभिनाहट और यात्रियों और दुकानदारों को कोलाहल मुझे असह्य प्रतीत हुआ।

जहाँ मनुष्य ध्यान और भगवत् चिन्तन की आशा रखता हैं, वहाँ उसे इनमे से कुछ भी नहीं मिलता ! यदि ध्यान की जरूरत हो तो वह अपने अन्तर में से पाना होगा। अवश्य ही मैंने ऐसी श्रद्धालु बहनों को भी देखा, जिन्हें इस बात का बिल्कुल पता न था कि उनके आसपास क्या हो रहा है। वे केवल अपने ध्यान में ही निमग्न थी। पर इस प्रबन्धकों का पुरुषार्थ नहीं माना जा सकता। काशी-विश्वनाथ के आसपास शान्त, निर्मल, सुगन्धित और स्वच्छ वातावरण - बाह्य एवं आन्तरिक - उत्पन्न करना और उसे बनाये रखना प्रबन्धको का कर्तव्य होना चाहिये। इसके बदले वहाँ मैंने ठग दुकानदारो का बाजार देखा, जिसमे नये से नये ढंग की मिठाइयाँ और खिलोने बिकते थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book