जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
सर फीरोजशाह ने पूछा, 'आप उस प्रस्ताव को देख चुके हैं?'
'हाँ।'
'आपको वह पसन्द आया?'
'काफी अच्छा है।'
'तो गाँधी, पढ़ो।'
मैंने काँपते हुए प्रस्ताव पढ़ सुनाया।
गोखले ने उसका समर्थन किया।
सब बोल उठे, 'सर्व-सम्मति से पास।'
वाच्छा बोले, 'गाँधी, तुम पाँच मिनट लेना।'
इस दृश्य से मुझे प्रसन्नता न हुई। किसी ने भी प्रस्ताव को समझने का कष्ट नहीं उठाया। सब जल्दी में थी। गोखने में प्रस्ताव देख लिया था, इसलिए दूसरो को देखने-सुनने की आवश्यकता प्रतीत न हुई।
सवेरा हुआ।
मुझे तो अपने भाषण की फिक्र थी। पाँच मिनट में क्या बोलूँगा? मैंने तैयारी तो अच्छी कर ली थी, पर उपयुक्त शब्द सूझते न थे। लिखित भाषण न पढ़ने का मेरा निश्चय था। पर ऐसा प्रतीत हुआ कि दक्षिण अफ्रीका में भाषण करने की जो स्वस्थता मुझ में आयी थी, उसे मैं यहाँ खो बैठा था।
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