जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
शान्ति
हमले के दो-एक दिन बाद जब मैं मि. एस्कम्ब से मिला तब मैं पुलिस थाने में ही था। रक्षा के लिए मेरे साथ एक-दो सिपाही रहते थे, पर दरअसल जब मुझे मि. एस्कम्ब के पास ले जाया गया तब रक्षा की आवश्यकता रहीं नहीं थी।
जिस दिन मैं जहाज से उतरा असी दिन, अर्थात् पीला झण्डा उतरने के बाद तुरन्त, 'नेटाल एडवरटाइजडर' नामक पत्र का प्रतिनिधि मुझ से मिल गया था। उसने मुझ से कई प्रश्न पूछे थे और उनके उत्तर में मैं प्रत्येक आरोप का पूरा-पूरा जवाब दे सका था। सप फिरोजशाह मेंहता के प्रताप से उस समय मैंने हिन्दुस्तान में एक भी भाषण बिना लिखे नहीं किया था। अपने उन सब भाषणों और लेखों का संग्रह तो मेरे पास था ही। मैंने वह सब उसे दिया और सिद्ध कर दिखाया कि मैंने हिन्दुस्तान में ऐसी एक भी बात नहीं कहीं, तो अधिक तीव्र शब्दों में दक्षिण अफ्रीका में न कहीं हो। मैंने यह भी बता दिया कि 'कुरलैण्ड' और 'नादरी' के यात्रियों को लाने में मेरा हाथ बिल्कुल न था। उनमें से अधिकतर तो पुराने ही थे और बहुतेरे नेटाल में रहने वाले नहीं थे बल्कि ट्रान्सवाल जानेवाले थे। उन दिनों नेटाल में मन्दी थी। ट्रान्सवाल में अधिक कमाई होती थी। इस कारण अधिककर हिन्दुस्तानी वहीं जाना पसन्द करते थे।
इस खुलासे का और हमलावरों पर मुकदमा दायर करने का इतना ज्यादा असर पड़ा कि गोरे शरमिन्दा हुए। समाचार पत्रों ने मुझे निर्दोष सिद्ध किया और हुल्लड करने वालो की निन्दा की। इस प्रकार परिणान में तो मुझे लाभ ही हुआ, और मेरा लाभ मेरे कार्य का ही लाभ था। इससे भारतीय समाज की प्रतिष्ठा बढी और मेरा मार्ग अधिक सरल हो गया।
तीन या चार दिन बाद मैं अपने घर गया और कुछ ही दिनों में व्यवस्थित रीति से अपना कामकाज करने लगा। इस घटना के कारण मेरी वकालत भी बढ़ गयी।
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