जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मेरा अनुभव मुझे बतलाता हैं कि प्रतिपक्षी को न्याय देकर हम जल्दी न्याय पा जाते हैं। इस प्रकार मुझे अनसोची मदद मिल जाने से कलकत्ते में भी सार्वजनिक सभा होने की आशा बंधी। इतने में डरबन से तार मिला, 'पार्लियामेंट जनवरी में बैठेगी, जल्दी लौटिये।'
इससे अखबारों में एक पत्र लिखकर मैने तुरन्त लौट जाने की जरूरत जती दी औऱ कलकत्ता छोड़ा। दादा अब्दुल्ला के बम्बई एजेंट को तार दिया कि पहले स्टीमर से मेरे जाने की व्यवस्था करे। दादा अब्दुल्ला ने स्वयं 'कुरलैंड' नामक स्टीमर खरीद लिया था। उन्होंने उसमें मुझे और मेरे परिवार को मुफ्त ले जाने का आग्रह किया। मैने उसे धन्यवाद सहित स्वीकार कर लिया, और दिसम्बर के आरंभ में मैं 'कुरलैंड' स्टीमर से अपनी धर्मपत्नी, दो लड़को और अपने स्व. बहनोई केे एकमात्र लड़के को लेकर दूसरी बार दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हुआ। इस स्टीमर के साथ ही दूसरा 'नादरी' स्टीमर भी डरबन के लिए रवाना हुआ। दादा अब्दुल्ला उसके एजेंट थे। दोनों स्टीमरो में कुल मिलाकर करीब 800 हिन्दुस्तानी यात्री रहे होगे। उनमे से आधे से अधिक लोग ट्रान्सवाल जाने वाले थे।
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