जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
बम्बई में सभा
बहनोई के देहान्त के दूसरे ही दिन मुझे बम्बई की सभा के लिए जाना था। सार्वजनिक सभा के लिए भाषण की बात सोचने जितना समय मुझे मिला नहीं था। लम्बे जागरण की थकावट मालूम हो रही थी। आवाज भारी हो गयी थी। ईश्वर जैसे-तैसे मुझे निबाह लेगा, यह सोचता हुआ मैं बम्बई पहुँचा। भाषण लिखने की बात तो मैंने सपने में भी नहीं सोची थी। सभा की तारीख से एक दिन पहले शाम को पाँच बजे आज्ञानुसार मैं सर फिरोजशाह के दफ्तर में हाजिर हुआ।
उन्होंने पूछा, 'गाँधी, तुम्हारा भाषण तैयार हैं।'
मैंने डरते-डरते उत्तर दिया, 'जी नहीं, मैंने तो जबानी ही बोलने की बात सोच रखी हैं।'
'बम्बई में यह नहीं चलेगा। यहाँ की रिपोटिंग खराब हैं। यदि सभा से हमें कुछ फायदा उठाना हो, तो तुम्हारा भाषण लिखा हुआ ही होना चाहिये, और वह रातोरात छप जाना चाहिये। भाषण रात ही में लिख सकोगे न?'
मैं घबराया। पर मैंने लिखने का प्रयत्न करने की हामी भरी।
बम्बई के सिंह बोले,'तो मुंशी तुम्हारे पास भाषण लेने कब पहुँचे?'
मैंने उत्तर दिया, 'ग्यारह बजे।'
सर फिरोजशाह में अपने मुंशी को उस वक्त भाषण प्राप्त करके रातोरात छपा लेने का हुक्म दिया और मुझे बिदा किया।
दूसरे दिन मैं सभा में गया। वहाँ मैं यह अनुभव कर सका कि भाषण लिखने का आग्रह करने में कितनी बुद्धिमानी थी। फरामजी कावसजी इंस्टिट्यूट के हॉल में सभा थी। मैंने सुन रखा था कि जिस सभा में सर फिरोजशाह बोलने वाले हो, उस सभा में खडे रहने की जगह नहीं मिलती। ऐसी सभाओ में विद्यार्थी-समाज खास रस लेता था।
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