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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस पुस्तिका को डाक से भेजने के लिए इसके पैकेट तैयार करने का काम मुश्किल था, और पैसा देकर कराना खर्चीला था। मैंने सरल युक्ति खोज ली। मुहल्ले के सब लड़को को मैंने इकट्ठा किया और उनसे सबेरे के दो-तीन घंटो में से जितना समय वे दे सके उतना देने के लिए कहा। लड़को ने इतनी सेवा करना खुशी से स्वीकार किया। अपनी तरफ से मैंने उन्हें अपने पास जमा होनेवाले काम में आये हुए डाक टिकट और आशीर्वाद देना कबूल किया। इस प्रकार लड़को ने हँसते-हँसते मेरा काम पूरा कर दिया। इस प्रकार बच्चो को स्वयंसेवक बनाने का यह मेरा पहला प्रयोग था। इस बालको में से दो आज मेरे साथी हैं।

इन्ही दिनो बम्बई में पहली बाक प्लेग का प्रकोप हुआ। चारो तरफ घबराहट फैल रही थी। राजकोट में भी प्लेग फैलने का डर था। मैं सोचा कि मैं आरोग्य-विभाग में अवश्य काम कर सकता हूँ। मैंने अपनी सेवा राज्य को अर्पण करने के लिए पत्र लिखा। राज्य में जो कमेटी नियुक्त की उसमें मुझे भी स्थान दिया। मैंने पाखानो की सफाई पर जोर दिया और कमेटी ने निश्चय किया कि गली-गली जाकर पाखानो का निरीक्षण किया जाये। गरीब लोगों में अपने पाखानो का निरीक्षण करने देने में बिल्कुल आनाकानी नहीं की, यही नहीं बल्कि जो सुधार उन्हे सुझाये गये थे वे भी उन्होंने कर लिये। पर जब हम मुत्सद्दी वर्ग के यानि बड़े लोगों के घरो का मुआयना करने निकले, तो कई जगहो में तो हमे पाखाने का निरीक्षण करने की इजाजत तक न मिली, सुधार की तो बात ही क्या की जाय? हमारा साधारण अनुभव यह रहा कि धनिक समाज के पाखाने ज्यादा गन्दे थे। उनमे अंधेरा,बदबू और बेहद गन्दगी थी। खड्डी पर कीडे बिलबिलाते थे। जीते जी रोज नरक में ही प्रवेश करने जैसी वह स्थिति थी। हमारे सुझाये हुए सुधार बिल्कुल साधारण थे। मैंला जमीन पर न गिराकर कूंडे में गिराये। पानी की व्यवस्था ऐसी की जाये की वह जमीन में जज्ब होने के बदले कूंडे में इक्टठा हो। खुड्डी और भंगी के आने की जगह से बीच जो दीवार रखी जाती हैं वह तोड दी जाय, जिससे भंगी सारी जगह को अच्छी तरह साफ कर सके, पाखाने कुछ बड़े हो जाये तथा उनमे हवा-उजेला पहुँच सके। बड़े लोगों ने इन सुधारो को स्वीकार करने में बहुत आपत्ति की, और आखिर उन पर अमल तो किया ही नहीं।

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