जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
हिन्दुस्तान में
कलकत्ते से बम्बई जाते हुए प्रयाग बीच में पड़ता था। वहाँ ट्रेन 45 मिनट रुकती थी। इस बीच मैंने शहर का एक चक्कर लगा आने का विचार किया। मुझे केमिस्ट की दुकान से दवा भी खरीदनी थी। केमिस्ट ऊँधता हुआ बाहर निकला। दवा देने में उसने काफी दे कर दी। मैं स्टेशन पहुँचा तो गाडी चलती दिखायी पड़ी। भले स्टेशन-मास्टर ने मेरे लिए गाड़ी एक मिनट के लिए रोकी थी, पर मुझे वापस आते न देखकर उसने मेरा सामान उतरवा लेने की सावधानी बरती।
मैं केलनर के होटल में ठहरा और वहाँ से अपने काम के श्रीगणेश करने का निश्चय किया। प्रयाग के 'पायोनियर' पत्र की ख्याति मैंने सुन रखी थी।
मैं जानता था कि वह जनता की आकांक्षाओ का विरोधी हैं। मेरा ख्याल हैं कि उस समय मि. चेजनी (छोटे) सम्पादक थे। मुझे तो सब पक्षवालो से मिलकर प्रत्येक की सहायता लेनी थी। इसलिए मैंने मि. चेज़नी को मुलाकात के लिए पत्र लिखा। ट्रेन छूट जाने की बात लिखकर यह सूचित किया कि अगले ही दिन मुझे प्रयाग छोड देना हैं। उत्तर में उन्होंने मुझे तुरन्त मिलने के लिए बुलाया। मुझे खुशी हुई। उन्होंने मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनी। बोले, 'आप जो भी लिखकर भेजेंगे, उस पर मैं तुरन्त टिप्पणी लिखूँगा।' और साथ ही यह कहा, 'लेकिन मैं आपको यह नहीं कह सकता कि मैं आपकी सभी माँगो का स्वीकार ही कर सकूँगा। हमे तो 'कॉलोनियल' (उपनिवेशवालो का) दृष्टिकोण भी समझना और देखना होगा।'
मैंने उत्तर दिया, 'आप इस प्रश्न का अध्ययन करेंगे और इसे चर्चा का विषय बनायेंगे, इतना ही मेरे लिए बस हैं। मैं शुद्ध न्याय के सिवा न तो कुछ माँगता हूँ और न कुछ चाहता हूँ।'
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