लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


अब्दुल्ला सेठ उस्ताद ठहरे। उन्होंने कहा, 'अब उन्हे रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं, अथवा जितना मुझे है, उतना ही आपको भी है। पर आप जो कहते है सो ठीक हैं। हम सब उन्हे रोक लेय़ पर ये तो बारिस्टर हैं। इनकी फीस का क्या होगा?'

मैं दुःखी हुआ और बात काटकर बोला, 'अब्दुल्ला सेठ, इसमे मेरी फीस की बात ही नहीं उठती। सार्वजनिक सेवा की फीस कैसी? मैं ठहरूँ तो एक सेवक के रुप में ठहर सकता हूँ। मैं इन सब भाईयों को ठीक से पहचानता नहीं। पर आपको भरोसा हो कि ये सब मेंहनत करेंगे, तो मैं एक महीना रुक जाने को तैयार हूँ। यह सच है कि आपको कुछ नहीं देना होगा, फिर भी ऐसे काम बिल्कुल बिना पैसे के तो हो नहीं सकते। हमें तार करने होगे, कुछ साहित्य छपाना पड़ेगा, जहाँ-तहाँ जाना होगा उसका गाड़ी-किराया लगेगा। सम्भव हैं, हमें स्थानीय वकीलों की भी सलाह लेनी पड़े। मैं यहाँ के कानूनों से परिचित नहीं हूँ। मुझे कानून की पुस्तके देखनी होगी। इसके सिवा, ऐसे काम एक हाथ से नहीं होते, बहुतो को उनमे जुटना चाहिये।'

बहुत-सी आवाजे एकसाथ सुनायी पड़ी, 'खुदा की मेंहरबानी हैं। पैसे इकट्ठा हो जायेंगे, लोग भी बहुत हैं। आप रहना कबूल कर ले तो बस हैं।'

सभा सभा न रहीं। उसने कार्यकारिणी समिति का रुप ले लिया। मैंने सलाह दी कि भोजन से जल्दी निबटकर घर पहुँचना चाहियें। मैंने मन में लड़ाई की रुप रेखा तैयार कर ली। मताधिकार कितनो को प्राप्त हैं, सो जान लिया। और मैंने एक महीना रुक जाने का निश्चय किया।

इस प्रकार ईश्वर ने दक्षिण अफ्रीका में मेरे स्थायी निवास की नींव डाली और स्वाभिमान की लड़ाई का बीज रोपा गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book