जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पटरी पर चलने का प्रश्न मेरे लिए कुछ गम्भीर परिणामवाला सिद्ध हुआ। मैं हमेशा प्रेसिडेंट स्ट्रीट के रास्ते एक खुले मैंदान में घूमने जाया करता था। इस मुहल्ले में प्रेसिडेंट क्रूगर का घर था। यह घर सब तरह के आडंबरो से रहित था। इसके चारो ओर कोई अहाता नहीं था। आसपास के दूसरे घरो में और इसमे कोई फर्क नहीं मालूम होता था। प्रिटोरिया में कई लखपतियों के घर इसकी तुलना में बहुत बडे, शानदार और अहातेवाले थे। प्रेसिडेंट की सादगी प्रसिद्ध थी। घर के सामने पहरा देने वाले संतरी को देखकर ही पता चलता था कि यह किसी अधिकारी का घर है। मैं प्रायः हमेशा ही इस सिपाही के बिल्कुल पास से होकर निकलता था, पर वह मुझे कुछ नहीं कहता था। सिपाही समय-समय पर बदला करते थे। एक बार एर सिपाही में बिना चेताये, बिना पटरी पर से उकर जाने को कहे, मुझे धक्का मारा, लात मारी और नीचे उतार दिया। मैं तो गहरे सोच में पड़ गया। लात मारने का कारण पूछने से पहले ही मि. कोट्स ने, जो उसी समय घोडे पर सवार होकर गजर रहे थे, मुझे पुकारा और कहा, 'गाँधी, मैंने सब देखा हैं। आप मुकदमा चलाना चाहे तो मैं गवाही दूँगा। मुझे इस बात का बहुत खेद हैं कि आप पर इस तरह हमला किया गया।'
मैंने कहा, 'इसमे खेद का कोई कारण नहीं हैं। सिपाही बेचारा क्या जाने? उसके लिए काले-काले सब एक से ही हैं। वह हब्शियों को इसी तरह पटरी पर से उतारता होगा। इसलिए उसने मुझे भी धक्का मारा। मैंने तो नियम ही बना लिया हैं मुझ पर जो भी बीतेगी, उसके लिए मैं कभी अदालत में नहीं जाऊँगा। इसलिए मुझे मुकदमा नहीं चलाना हैं।'
'यह तो आपने अपने स्वभाव के अनुरुप ही बात कहीं हैं। पर आप इस पर फिर से सोचियें। ऐसे आदमी को कुछ सबक तो देना ही चाहिये।'
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