लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

कुलीनपन का अनुभव


ट्रान्सवाल और ऑरेन्ज फ्री स्टेट के हिन्दुस्तानियो की स्थिति का पूरा चित्र देने का यह स्थान नहीं हैं। उसकी जानकारी चाहने वाले को 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' पढ़ना चाहियें। पर यहाँ उसकी रुपरेखा देना आवश्यक हैं

ऑरेन्ज फ्री स्टेट में तो एक कानून बनाकर सन् 1888 में या उससे पहले हिन्दुस्तानियो के सब हक छीन लिये गये थे। यहाँ हिन्दुस्तानियो के लिए सिर्फ होटल में वेटर के रुप में काम करने या ऐसी कोई दूसरी मजदूरी करने की गुंजाइश रह गयी थी। जो व्यापारी हिन्दुस्तानी थे, उन्हे नाममात्र का मुआवजा देकर निकल दिया गया था। हिन्दुस्तानी व्यापारियों ने अर्जियाँ वगैरा भेजी, पर वहाँ उनकी तूती की आवाज कौन सुनता?

ट्रान्सवाल में सन् 1885 में एक कड़ा कानून बना। 1886 में उसमें कुछ सुधार हुआ। उसके फलस्वरुप यह तय हुआ कि हरएक हिन्दुस्तानी को प्रवेश फीस के रुप में तीन पौड जमा कराने चाहियें। उनके लिए अलग छोडी गयी जगह में ही वे जमीन मालिक हो सकते थे। पर वहाँ भी उन्हे व्यवहार में जमीन का स्वामित्व नहीं मिला। उन्हें मताधिकार भी नहीं दिया गया था। ये तो खास एशियावासियों के लिए बने कानून थे। इसके अलावा जो कानून काले रंग के लोगों को लागू होते थे, वे भी एशियावासियों पर लागू होते थे। उनके अनुसार हिन्दुस्तानी लोग पटरी (फुटपाथ) पर अधिकार पूर्वक चल नहीं सकते थे और रात नौ बजे के बाद परवाने बिना बाहर नहीं निकल सकते थे। इस अंतिम कानून का अमल हिन्दुस्तानियों पर न्यूनाधिक प्रमाण नें होता होता था। जिनकी गिनती अरबो में होती थी, वे बतौर मेंहरबानी के इस नियम से मुक्त समझे जाते थे। मतलब यह कि इस तरह की राहत देना पुलिस की मर्जी पर रहता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book