जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मेरे जीवन की ऐसी यह तीसरी परीक्षा थी। कितने ही नवयुवक शुरू में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होते। मैं अपने पुरुषार्थ के कारण नहीं बचा था। अगर मैंने कोठरी में घुसने से साफ इन्कार किया होता, तो वह मेरा पुरुषार्थ माना जाता। मुझे तो अपनी रक्षा के लिए केवल ईश्वर का ही उपकार मानना चाहिये। पर इस घटना के कारण ईश्वर में मेरी श्रद्धा और झूठी शरम छोडने की कुछ हिम्मत भी मुझे में आयी।
जंजीबार में एक हफ्ता बिताना था, इसलिए एक घर किराये से लेकर मैं शहर में रहा। शहर कों खूब घूम-घूमकर देखा। जंजीबार की हरियाली की कल्पना मलाबार को देखकर ही सकती हैं। वहाँ के विशाल वृक्ष और वहाँ के बड़े-बडे फल वगैरा देखकर मैं तो दंग ही रह गया।
जंजीबार से मैं मोजाम्बिक और वहाँ से लगभग मई के अन्त में नेटाल पहुँचा।
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