जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
भाई ने मुझ से चर्चा की। मैं सबका अर्थ समझ न सका। मैं यह जान न सका कि मुझे सिर्फ वकील को समझाने का ही काम करना हैं या अदालत में भी जाना होगा। फिर भी मैं ललचाया।
दादा अब्दुल्ला के साझी मरहूम सेठ अब्दुल करीम झवेरी से भाई ने मेरी मुलाकात करायी। सेठ ने कहा, 'आपको ज्यादा मेंहनत नहीं करनी होगी। बड़े-बड़े साहब से हमारी दोस्ती हैं। उनसे आपको जान-पहचान होगी। आप हमारी दुकान में भी मदद कर सकेगे। हमारे यहाँ अग्रेजी पत्र-व्यवहार बहुत होता हैं। आप उसमें भी मदद कर सकेंगे। आप हमारे बंगले में ही रहेंगे। इससे आप पर खर्च का बिल्कुल बोझ नहीं पड़ेगा।'
मैंने पूछा, 'आप मेरी सेवायें कितने समय के लिए चाहते हैं? आप मुझे वेतन क्या देंगे?'
'हमें एक साल से अधिक आपकी जरूरत नहीं रहेगी। आपको पहले दर्जे का मार्गव्यय देगें और निवास तथा भोजन खर्च के अलावा 105 पौड देंगे।'
इसे वकालत नहीं कर सकते। यह नौकरी थी। पर मुझे तो जैसे भी बने हिन्दुस्तान छोड़ने था। नया देश देखने को मिलेगा और अनुभव प्राप्त होगा सो अलग। भाई को 105 पौड भेजूँगा तो घर खर्च चलाने में कुछ मदद होगी। यह सोचकर मैंने वेतन के बारे में बिना कुछ झिक-झिक किये ही सेठ अब्दुल करीम का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और मैं दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए तैयार हो गया।
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