जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पहला मुकदमा
बम्बई में एक ओर मेरी कानून की पढ़ाई शुरू हुई ; दुसरी ओर मेरे आहार के प्रयोग चले और उनमें वीरचन्द गाँधी मेरे साथ हो गये। तीसरी तरफ भाई ने मेरे लिए मुकदमें खोजनें की कोशिश शुरू की।
कानून की पढ़ाई का काम धीमी चाल से चला। जाब्ता दीवानी (सिविल प्रोसीजर कोड) किसी भी तरह गले न उतरता था। एविडेम्स एक्ट (कानून शहादत) की पढाई ठीक चली। वीरचन्द गाँधी सालिसिटर बनने की तैयारी कर रहे थे। इसलिए वे वकीलों के बारे में बहुत कुछ कहते रहते थे। 'फीरोजशाह मेंहता की होशियारी का कारण उनका अगाध कानूनी ज्ञान हैं। एविडेन्स एक्ट तो उनको जबानी याद हैं। धारा 32 के हर एक मुकदमे की उन्हें जानकारी हैं। बदरुद्दीन तैयबजी की होशियारी ऐसी हैं कि न्यायाधीश भी उनके सामने चौधिया जाते हैं। बहस करने की उनकी शक्ति अद्भूत हैं।' इधर मैं इन महारथियो की बाते सुनता और उधर मेरी घबराहट बढ़ जाती।
वे कहते, 'पाँच-सात साल तक बॉरिस्टर का अदालत में जूतियाँ तोड़ते रहना आश्चर्यजनक नहीं माना जाता। इसलिए मैंने सॉलिसिटर बनने का निश्चय किया हैं। कोई तीन साल के बाद भी तुम अपना खर्च चलाने लायक कमा लो तो कहना कि तुमने खूब प्रगति कर ली।'
हर महीने खर्च बढ़ता जाता था। बाहर बॉरिस्टर की तख्ती लटकाये रहना और घर में बारिस्टरी करने की तैयारी करना ! मेरा मन इन दो के बीच कोई तालमेल नहीं बैठा पाता था। इसलिए कानून की मेरी पढ़ाई व्यग्र चित से होती थी। शहादत के कानून में कुछ रुचि पैदा होने की बात तो ऊपर कह चुका हूँ। मेंइन का 'हिन्दू लॉ' मैंने बहुत रुचिपूर्वक पढ़ा, पर मुकदमा लड़ने की हिम्मत न आयी। अपना दुःख किसे सुनाऊँ? मेरी दशा ससुराल गयी हुई नई बहू की सी सो गयी !
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