नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मैं स्थिर होकर सुनने लगा, जैसे कोई भूली हुई सुन्दर कहानी। मन में उत्कण्ठा थी, और एक कसक भरा कुतूहल था! फिर सुनाई पड़ा-
ई कुल बतियाँ कबौं नाहीं जनली,
देखली कबौं न सपनवाँ में।
बरजोरी बसे हो-
मैं मूर्ख-सा उस गान का अर्थ-सम्बन्ध लगाने लगा।
अँगने में खेलते हुए - ई कुल बतियाँ, वह कौन बात थी? उसे जानने के लिए हृदय चञ्चल बालक-सा मचल गया। प्रतीत होने लगा, उन्हीं कुल अज्ञात बातों के रहस्य-जाल में मछली-सा मन चाँदनी के समुद्र में छटपटा रहा है।
मैंने अधीर होकर कहा- ठाकुर! इसको बुलवाओगे?
नहीं जी, वह पगली है।
पगली! कदापि नहीं! जो ऐसा गा सकती है, वह पगली नहीं हो सकती। जीवन! उसे बुलाओ, बहाना मत करो।
तुम व्यर्थ हठ कर रहे हो। -एक दीर्घ निश्वास को छिपाते हुए जीवन ने कहा।
मेरा कुतूहल और भी बढ़ा। मैंने कहा- हठ नहीं, लड़ाई भी करना पड़े तो करूँगा। बताओ, तुम क्यों नहीं बुलाने देना चाहते हो?
वह इसी गाँव की भाँट की लडक़ी है। कुछ दिनों से सनक गई है। रात भर कभी-कभी गाती हुई गंगा के किनारे घूमा करती है।
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