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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


गुल को उस युवक के हताश होने पर दया आ गई। यह भी स्मरण हुआ कि वह अतिथि है। उसने कहा- ”कहिये, आपकी क्या सेवा करूँ? मीना का गान सुनियेगा? वह स्वर्ग की रानी है!”

युवक ने कहा- ”चलो।”

द्राक्षा-मण्डप में दोनों पहुँचे। मीना वहाँ बैठी हुई थी। गुल ने कहा- ”अतिथि को अपना गान सुनाओ।”

एक नि:श्वास लेकर वही बुलबुल का संगीत सुनाने लगी। युवक की आँखें सजल हो गईं, उसने कहा- ”सचमुच तुम स्वर्ग की देवी हो!”

“नहीं अतिथि, मैं उस पृथ्वी की प्राणी हूँ-जहाँ कष्टों की पाठशाला है, जहाँ का दु:ख इस स्वर्ग-सुख से भी मनोरम था, जिसका अब कोई समाचार नहीं मिलता”-मीना ने कहा।

“तुम उसकी एक करुण-कथा सुनना चाहो, तो मैं तुम्हें सुनाऊँ!”-युवक ने कहा।

“सुनाइये”- मीना ने कहा।

युवक कहने लगा-

“वाह्लीक, गान्धार, कपिशा और उद्यान, मुसलमानों के भयानक आतंक में काँप रहे थे। गान्धार के अन्तिम आर्य-नरपति भीमपाल के साथ ही, शाहीवंश का सौभाग्य अस्त हो गया। फिर भी उनके बचे हुए वंशधर उद्यान के मंगली दुर्ग में, सुवास्तु की घाटियों में, पर्वत-माला, हिम और जंगलों के आवरण में अपने दिन काट रहे थे। वे स्वतन्त्र थे।

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