नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बन्दूक कन्धे पर रक्खे और हाथ में एक मरा हुआ पक्षी लटकाये वह दौड़ता चला आ रहा था। पत्थरों की नुकीली चट्टानें उसके पैर को छूती ही न थीं। मुँह से सीटी बज रही थी। वह था गुलमुहम्मद का सोलह बरस का लडक़ा अमीर खाँ! उसने आते ही कहा- ”प्रेमकुमारी, तू थाली उठाकर भागी क्यों जा रही है? मुझे तो आज खीर खिलाने के तूने कह रक्खा था।”
“हाँ भाई अमीर! मैं अभी और ठहरती; पर क्या करूँ, यह देख न, कौन आ गया है! इसीलिए मैं घर जा रही थी।”
अमीर ने आगन्तुक को देखा। उसे न जाने क्यों क्रोध आ गया। उसने कड़े स्वर से पूछा- ”तू कौन है?”
“एक मुसलमान” - उत्तर मिला।
अमीर ने उसकी ओर से मुँह फिराकर कहा-”मालूम होता है कि तू भी भूखा है। चल, तुझे बाबा से कहकर कुछ खाने को दिलवा दूँगा। हाँ, इस खीर में से तो तुझे नहीं मिल सकता। चल न वहीं, जहाँ आग जलती दिखाई दे रही है।” फिर उसने प्रेमकुमारी से कहा- ”तू मुझे क्यों नहीं देती? वह सब आ जायँगे, तब तेरी खीर मुझे थोड़ी ही सी मिलेगी।”
सीटियों के शब्द से वायु-मण्डल गूँजने लगा था। नटखट अमीर का हृदय चञ्चल हो उठा। उसने ठुनककर कहा- ”तू मेरे हाथ पर ही देती जा और मैं खाता जाऊँ।”
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