लोगों की राय

नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

Like this Hindi book 0

जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


बुढिय़ा ने आकर हाथ जोड़ते हुए कहा- ”क्या है महाराज?”

“सुना है कि कल तेरा लडक़ा कुछ अछूतों के साथ मन्दिर में घुसकर दर्शन करने जायगा?”

“नहीं, नहीं, कौन कहता है महाराज! वह शराबी, भला मन्दिर में उसे कब से भक्ति हुई है?”

“नहीं, मैं तुझसे कहे देता हूँ, अपनी खोपड़ी सँभालकर रखने के लिए उसे समझा देना। नहीं तो तेरी और उसकी; दोनों की दुर्दशा हो जायगी।”

राधे ने पीछे से आते हुए क्रूर स्वर में कहा- ”जाऊँगा, सब तेरे बाप के भगवान् हैं! तू होता कौन है रे!”

“अरे, चुप रे राधे! ऐसा भी कोई कहता है रे। अरे, तू जायगा, मन्दिर में? भगवान् का कोप कैसे रोकेगा, रे?” बुढिय़ा गिड़गिड़ा कर कहने लगी। कुँजबिहारी जमादार ने राधे की लाठी देखते ही ढीली बोल दी। उसने कहा- ”जाना राधे कल, देखा जायगा।” - जमादार धीरे-धीरे खिसकने लगा।

“अकेले-अकेले बैठकर भोग-प्रसाद खाते-खाते बच्चू लोगों को चरबी चढ़ गयी है। दरशन नहीं रे - तेरा भात छीनकर खाऊँगा। देखूँगा, कौन रोकता है।” - राधे गुर्राने लगा। कुञ्ज तो चला गया, बुढिय़ा ने कहा- ”राधे बेटा, आज तक तूने कौन-से अच्छे काम किये हैं, जिनके बल पर मन्दिर में जाने का साहस करता है? ना बेटा, यह काम कभी मत करना। अरे, ऐसा भी कोई करता है।”

“तूने भात बनाया है आज?”

“नहीं बेटा! आज तीन दिन से पैसे नहीं मिले। चावल है नहीं।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book