नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पास ही जाते हुए माँ और बेटे की बात कमल के कान में पड़ी। वह उठकर उसके पास गया। उसने कहा- सुन्दरी!
बाबूजी! - आश्चर्य से सुन्दरी ने कहा - बालक ने भी स्वर मिलाकर कहा- बाबूजी!
कमल ने रुपया देते हुए कहा- सुन्दरी, यह एक ही रुपया बचा है, इसको ले जाओ। बच्चे को कुरता ख़रीद लेना। मैंने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है, क्षमा करोगी?
बच्चे ने हाथ फैला दिया - सुन्दरी ने उसका नन्हा हाथ अपने हाथ में समेट कर कहा- नहीं, मेरे बच्चे के कुरते से अधिक आवश्यकता आपके पेट के लिए है। मैं सब जानती हूँ।
मेरा-आज अन्त होगा, अब मुझे आवश्यकता नहीं- ऐसे पापी जीवन को रखकर क्या होगा! सुन्दरी! मैंने तुम्हारे ऊपर बड़ा अत्याचार किया है, क्षमा करोगी! आह! इस अन्तिम रुपये को लेकर मुझे क्षमा कर दो। यह एक ही सार्थक हो जाय!
आज तुम अपने पाप का मूल्य दिया चाहते हो - वह भी एक रुपया?
और एक फूटी कौड़ी भी नहीं है, सुन्दरी! लाखों उड़ा दिया है - मैं लोभी नहीं हूँ।
विधवा के सर्वस्व का इतना मूल्य नहीं हो सकता।
मुझे धिक्कार दो, मुझ पर थूको।
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