नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
नायक ने कहा- ”बुधगुप्त! तुमको मुक्त किसने किया?”
कृपाण दिखाकर बुधगुप्त ने कहा- ”इसने।”
नायक ने कहा- ”तो तुम्हें फिर बन्दी बनाऊँगा।”
“किसके लिये? पोताध्यक्ष मणिभद्र अतल जल में होगा-नायक! अब इस नौका का स्वामी मैं हूँ।”
“तुम? जलदस्यु बुधगुप्त? कदापि नहीं।”- चौंक कर नायक ने कहा और अपना कृपाण टटोलने लगा! चम्पा ने इसके पहले उस पर अधिकार कर लिया था। वह क्रोध से उछल पड़ा।
“तो तुम द्वंद्वयुद्ध के लिये प्रस्तुत हो जाओ; जो विजयी होगा, वह स्वामी होगा।”- इतना कहकर बुधगुप्त ने कृपाण देने का संकेत किया। चम्पा ने कृपाण नायक के हाथ में दे दिया।
भीषण घात-प्रतिघात आरम्भ हुआ। दोनों कुशल, दोनों त्वरित गतिवाले थे। बड़ी निपुणता से बुधगुप्त ने अपना कृपाण दाँतों से पकड़कर अपने दोनों हाथ स्वतन्त्र कर लिये। चम्पा भय और विस्मय से देखने लगी। नाविक प्रसन्न हो गये। परन्तु बुधगुप्त ने लाघव से नायक का कृपाण वाला हाथ पकड़ लिया और विकट हुंकार से दूसरा हाथ कटि में डाल, उसे गिरा दिया। दूसरे ही क्षण प्रभात की किरणों में बुधगुप्त का विजयी कृपाण हाथों में चमक उठा। नायक की कातर आँखें प्राण-भिक्षा माँगने लगीं।
बुधगुप्त ने कहा- ”बोलो, अब स्वीकार है कि नहीं?”
“मैं अनुचर हूँ, वरुणदेव की शपथ। मैं विश्वासघात नहीं करूँगा।” बुधगुप्त ने उसे छोड़ दिया।
|