नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
ऊषा के आलोक में सभा-मण्डप दर्शकों से भर गया। बन्दी अरुण को देखते ही जनता ने रोष से हूँकार करते हुए कहा- ‘वध करो!’
राजा ने सबसे सहमत होकर आज्ञा दी-‘प्राण दण्ड।’
मधूलिका बुलायी गई। वह पगली-सी आकर खड़ी हो गई। कोशल-नरेश ने पूछा- मधूलिका, तुझे जो पुरस्कार लेना हो, माँग। वह चुप रही।
राजा ने कहा- मेरी निज की जितनी खेती है, मैं सब तुझे देता हूँ। मधूलिका ने एक बार बन्दी अरुण की ओर देखा। उसने कहा- मुझे कुछ न चाहिए। अरुण हँस पड़ा। राजा ने कहा- नहीं, मैं तुझे अवश्य दूँगा। माँग ले।
तो मुझे भी प्राणदण्ड मिले। कहती हुई वह बन्दी अरुण के पास जा खड़ी हुई।
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