नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
वह सावधान होकर उठ खड़ी हुई। लंगरखाने से रोटियों का थाल लेकर सराय की ओर चल पड़ी। सराय के फाटक पर पहुँचकर वह निराश्रित भूखों को खोज-खोज कर रोटियाँ देने लगी। एक कोठरी के समीप पहुँचकर उसने देखा कि एक युवक टूटी हुई खाट पर पड़ा कराह रहा है। उसने पूछा—”क्या है? भाई, तुम बीमार हो क्या? मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकती हूँ तो बताओ।”
“बहुत कुछ”—टूटे स्वर से युवक ने कहा। नूरी भीतर चली गयी।
उसने पूछा—”क्या है, कहिए?”
“पास में पैसा न होने से ये लोग मेरी खोज नहीं लेते। आज सवेरे से मैंने जल नहीं पिया। पैर इतने दुख रहे हैं कि उठ नहीं सकता।”
“कुछ खाया भी न होगा।”
“कल रात को यहाँ पहुँचने पर थोड़ा-सा खा लिया था। पैदल चलने से पैर सूज आये हैं। तब से यों ही पड़ा हूँ।”
नूरी थाल रखकर बाहर चली गयी। पानी लेकर आयी। उसने कहा—”लो, अब उठकर कुछ रोटियाँ खाकर पानी पी लो।” युवक उठ बैठा। कुछ अन्न-जल पेट में जाने के बाद जैसे उसे चेतना आ गयी। उसने पूछा— ”तुम कौन हो?”
“मैं लंगरखाने से रोटियाँ बाँटती हूँ। मेरा नाम नूरी है। जब तक तुम्हारी पीड़ा अच्छी न होगी, मैं तुम्हारी सेवा करूँगी। रोटियाँ पहुँचाऊँगी। जल रख जाऊँगी। घबराओ नहीं। यह मालिक सबको देखता है।” युवक की विवर्ण आँखे प्रार्थना में ऊपर की ओर उठ गयीं। फिर दीर्घ नि:श्वास लेकर उसने पूछा—”क्या नाम बतलाया? नूरी न?
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