नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
चन्द्रभागा के तट पर शिविरों की एक श्रेणी थी। उसके समीप ही घने वृक्षों के झुरमुट में इरावती और फिरोज़ा बैठी हुई सायंकालीन गम्भीरता की छाया में एक-दूसरे का मुँह देख रही हैं। फिरोज़ा ने कहा- बलराज को तुम प्यार करती हो?
मैं नहीं जानती। -एक आकस्मिक उत्तर मिला!
और वह तो तुम्हारे लिए गजनी से हिन्दुस्तान चला आया।
तो क्यों आने दिया, वहीं रोक रखती।
तुमको क्या हो गया है?
मैं-मैं नहीं रही; मैं हूँ दासी; कुछ धातु के टुकड़ों पर बिकी हुई हाड़-मांस का समूह, जिसके भीतर एक सूखा हृदय-पिण्ड है।
इरा! वह मर जायगा-पागल हो जायगा।
और मैं क्या हो जाऊँ, फिरोज़ा?
अच्छा होता, तुम भी मर जाती! -तीखेपन से फिरोज़ा ने कहा।
इरावती चौंक उठी। उसने कहा- बलराज ने वह भी न होने दिया। उस दिन नियाल्तगीन की तलवार ने यही कर दिया होता; किन्तु मनुष्य बड़ा स्वार्थी है। अपने सुख की आशा में वह कितनों को दुखी बनाया करता है। अपनी साध पूरी करने में दूसरों की आवश्यकता ठुकरा दी जाती है। तुम ठीक कह रही हो फिरोज़ा, मुझे...
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